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"हम हैं राही प्यार के / मजरूह सुल्तानपुरी" के अवतरणों में अंतर

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हम हैं राही प्यार के, हमसे कुछ ना बोलिए
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इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल
जो भी प्यार से मिला, हम उसी के हो लिए
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जग में रह जाएंगे, प्यारे तेरे बोल
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दूजे के होंठों को, देकर अपने गीत
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कोई निशानी छोड़, फिर दुनिया से डोल
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इक दिन बिक जायेगा  ...
  
दर्द भी हमें कुबूल, चैन भी हमें कुबूल
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ला ला ललल्लल्ला
हमने हर तरह के फूल, हार में पिरो लिए
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जो भी प्यार...
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धूप थी नसीब में, धूप में(तो) लिया है दम
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(अनहोनी पग में काँटें लाख बिछाए
चांदनी मिली तो हम, चांदनी में सो लिए
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होनी तो फिर भी बिछड़ा यार मिलाए ) \- (२)
जो भी प्यार...
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ये बिरहा ये दूरी, दो पल की मजबूरी
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फिर कोई दिलवाला काहे को घबराये, तरम्पम,
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धारा, तो बहती है, बहके रहती है
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बहती धारा बन जा, फिर दुनिया से डोल
 +
एक दिन ...
  
दिल पे आसरा लिए, हम तो बस यूँ ही जिये
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(परदे के पीछे बैठी साँवली गोरी
इक कदम पे हंस लिए, इक कदम पे रो लिए
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थाम के तेरे मेरे मन की डोरी  ) \- (२)
जो भी प्यार...
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ये डोरी ना छूटे, ये बन्धन ना टूटे
 
+
भोर होने वाली है अब रैना है थोड़ी, तरम्पम,
राह में पड़े हैं हम, कब से आप की क़सम
+
सर को झुकाए तू, बैठा क्या है यार
देखिये तो कम से कम, बोलिए न बोलिए
+
गोरी से नैना जोड़, फिर दुनिया से डोल
जो भी प्यार...  
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एक दिन ...
 
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13:39, 22 नवम्बर 2011 के समय का अवतरण

इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल
जग में रह जाएंगे, प्यारे तेरे बोल
दूजे के होंठों को, देकर अपने गीत
कोई निशानी छोड़, फिर दुनिया से डोल
इक दिन बिक जायेगा ...

ला ला ललल्लल्ला

(अनहोनी पग में काँटें लाख बिछाए
होनी तो फिर भी बिछड़ा यार मिलाए ) \- (२)
ये बिरहा ये दूरी, दो पल की मजबूरी
फिर कोई दिलवाला काहे को घबराये, तरम्पम,
धारा, तो बहती है, बहके रहती है
बहती धारा बन जा, फिर दुनिया से डोल
एक दिन ...

(परदे के पीछे बैठी साँवली गोरी
थाम के तेरे मेरे मन की डोरी ) \- (२)
ये डोरी ना छूटे, ये बन्धन ना टूटे
भोर होने वाली है अब रैना है थोड़ी, तरम्पम,
सर को झुकाए तू, बैठा क्या है यार
गोरी से नैना जोड़, फिर दुनिया से डोल
एक दिन ...