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"काम आ गई दीवानगी अपनी / क़तील" के अवतरणों में अंतर

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तुम्हारी अंजुमन से उठ के दीवाने कहाँ जाते  
 
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जो वाबस्ता हुए, तुमसे, वो अफ़साने कहाँ जाते
जो वाबस्ता हुए,तुमसे,वो अफ़साने कहाँ जाते
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निकलकर दैरो-काबा से अगर मिलता न मैख़ाना  
 
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तो ठुकराए हुए इंसाँ खुदा जाने कहाँ जाते  
 
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तुम्हारी बेरुख़ी ने लाज रख ली बादाखाने की  
 
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तुम आँखों से पिला देते तो पैमाने कहाँ जाते  
 
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चलो अच्छा हुआ काम आ गई दीवानगी अपनी  
 
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वगरना हम जमाने-भर को समझाने कहाँ जाते  
 
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क़तील अपना मुकद्दर ग़म से बेगाना अगर होता  
 
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तो फिर अपने पराए हम से पहचाने कहाँ जाते
तो फर अपने पराए हम से पहचाने कहाँ जाते
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17:33, 30 नवम्बर 2011 के समय का अवतरण

तुम्हारी अंजुमन से उठ के दीवाने कहाँ जाते
जो वाबस्ता हुए, तुमसे, वो अफ़साने कहाँ जाते

निकलकर दैरो-काबा से अगर मिलता न मैख़ाना
तो ठुकराए हुए इंसाँ खुदा जाने कहाँ जाते

तुम्हारी बेरुख़ी ने लाज रख ली बादाखाने की
तुम आँखों से पिला देते तो पैमाने कहाँ जाते

चलो अच्छा हुआ काम आ गई दीवानगी अपनी
वगरना हम जमाने-भर को समझाने कहाँ जाते

क़तील अपना मुकद्दर ग़म से बेगाना अगर होता
तो फिर अपने पराए हम से पहचाने कहाँ जाते