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"नही डरते / जयशंकर प्रसाद" के अवतरणों में अंतर

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क्या हमने कह दिया, हुए क्यों रुष्ट हमें बतलाओ भी
 
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ठहरो, सुन लो बात हमारी, तनक न जाओ, आओ भी
 
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रूठ गये तुम, नहीं सुनोगे, अच्छा! अच्छी बात हुई
 
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सुहृद, सदय, सज्जन मधुमुख थे मुझको अबतक मिले कई
 
सुहृद, सदय, सज्जन मधुमुख थे मुझको अबतक मिले कई
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सबको था दे चुका, बचे थे उलाहने से तुम मेरे
 
सबको था दे चुका, बचे थे उलाहने से तुम मेरे
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वह भी अवसर मिला, कहूँगा हृदय खोल कर गुण तेरे
 
वह भी अवसर मिला, कहूँगा हृदय खोल कर गुण तेरे
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कहो न कब बिनती की मेरी सच कहना कि 'मुझे चाहो'
 
कहो न कब बिनती की मेरी सच कहना कि 'मुझे चाहो'
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मेरे खौल रहे हृत्सर में तुम भी आकर अवगाहो
 
मेरे खौल रहे हृत्सर में तुम भी आकर अवगाहो
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फिर भी, कब चाहा था तुमने हमको, यह तो सत्य कहो
 
फिर भी, कब चाहा था तुमने हमको, यह तो सत्य कहो
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हम विनोद की सामग्री थे केवल इससे मिले रहो
 
हम विनोद की सामग्री थे केवल इससे मिले रहो
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तुम अपने पर मरते हो, तुम कभी न इसका गर्व करो
 
तुम अपने पर मरते हो, तुम कभी न इसका गर्व करो
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कि 'हम चाह में व्याकुल है' यह गर्म साँस अब नहीं भरो
 
कि 'हम चाह में व्याकुल है' यह गर्म साँस अब नहीं भरो
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मिथ्या ही हो, किन्तु प्रेम का प्रत्याख्यान नहीं करते
 
मिथ्या ही हो, किन्तु प्रेम का प्रत्याख्यान नहीं करते
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धोखा क्या है, समझ चुके थे; फिर भी किया, नही डरते
 
धोखा क्या है, समझ चुके थे; फिर भी किया, नही डरते

23:37, 20 सितम्बर 2007 का अवतरण

कानन-कुसुम -

क्या हमने कह दिया, हुए क्यों रुष्ट हमें बतलाओ भी

ठहरो, सुन लो बात हमारी, तनक न जाओ, आओ भी

रूठ गये तुम, नहीं सुनोगे, अच्छा! अच्छी बात हुई

सुहृद, सदय, सज्जन मधुमुख थे मुझको अबतक मिले कई

सबको था दे चुका, बचे थे उलाहने से तुम मेरे

वह भी अवसर मिला, कहूँगा हृदय खोल कर गुण तेरे

कहो न कब बिनती की मेरी सच कहना कि 'मुझे चाहो'

मेरे खौल रहे हृत्सर में तुम भी आकर अवगाहो

फिर भी, कब चाहा था तुमने हमको, यह तो सत्य कहो

हम विनोद की सामग्री थे केवल इससे मिले रहो

तुम अपने पर मरते हो, तुम कभी न इसका गर्व करो

कि 'हम चाह में व्याकुल है' यह गर्म साँस अब नहीं भरो

मिथ्या ही हो, किन्तु प्रेम का प्रत्याख्यान नहीं करते

धोखा क्या है, समझ चुके थे; फिर भी किया, नही डरते