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"प्रथम किरण / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर

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14:49, 17 दिसम्बर 2011 का अवतरण

भोर की
प्रथम किरण
फीकी :
अनजाने
जागी हो
याद
किसी की--

अपनी
मीठी
नीकी !
धीरे-धीरे
उदित
रवि का
ल्लाल-लाल
गोला
चौंक कहीं पर
छिपा
मुदित
बन-पाखी
बोला
दिन है
जब है
यह बहु-जन की :

प्रणति
लाल रवि
ओ जन-जीवन
लो यह
मेरी
सकल साधना
तन की
मन की--

वह बन-पाखी
जाने गरिमा
महिमा
मेरे छोटे
चेतन
छन की !