"दुनिया / रघुवीर सहाय" के अवतरणों में अंतर
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हिलती हुई मुँडेरें हैं और चटखे हुए हैं पुल | हिलती हुई मुँडेरें हैं और चटखे हुए हैं पुल | ||
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औरतें बुना करती हैं - दुनिया की सब औरतें मिलकर | औरतें बुना करती हैं - दुनिया की सब औरतें मिलकर | ||
एक दूसरे के नमूनोंवाला एक अनंत स्वेटर | एक दूसरे के नमूनोंवाला एक अनंत स्वेटर | ||
− | दुनिया एक चिपचिपायी हुई-सी चीज़ हो गई | + | दुनिया एक चिपचिपायी हुई-सी चीज़ हो गई है । |
लोग या तो कृपा करते हैं या खुशामद करते हैं | लोग या तो कृपा करते हैं या खुशामद करते हैं | ||
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न कोई प्यार करता है न कोई नफ़रत | न कोई प्यार करता है न कोई नफ़रत | ||
लोग या तो दया करते हैं या घमंड | लोग या तो दया करते हैं या घमंड | ||
− | दुनिया एक फँफुदियायी हुई-चीज़ हो गई | + | दुनिया एक फँफुदियायी हुई-चीज़ हो गई है । |
लोग कुछ नहीं करते जो करना चाहिए तो लोग करते क्या हैं | लोग कुछ नहीं करते जो करना चाहिए तो लोग करते क्या हैं | ||
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कुढ़ते हुए लोग और बिराते हुए लोग | कुढ़ते हुए लोग और बिराते हुए लोग | ||
खुजलाते हुए लोग और सहलाते हुए लोग | खुजलाते हुए लोग और सहलाते हुए लोग | ||
− | दुनिया एक बजबजायी हुई-सी चीज़ हो गई | + | दुनिया एक बजबजायी हुई-सी चीज़ हो गई है । |
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20:47, 17 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण
हिलती हुई मुँडेरें हैं और चटखे हुए हैं पुल
बररे हुए दरवाज़े हैं और धँसते हुए चबूतरे
दुनिया एक चुरमुरायी हुई-सी चीज़ हो गई है
दुनिया एक पपड़ियायी हुई-सी चीज़ हो गई है
लोग आज भी खुश होते हैं
पर उस वक़्त एक बार तरस ज़रूर खाते हैं
लोग ज़्यादातर वक़्त संगीत सुना करते हैं
पर साथ-साथ और कुछ ज़रूर करते रहते हैं
मर्द मुसाहबत किया करते हैं, बच्चे स्कूल का काम
औरतें बुना करती हैं - दुनिया की सब औरतें मिलकर
एक दूसरे के नमूनोंवाला एक अनंत स्वेटर
दुनिया एक चिपचिपायी हुई-सी चीज़ हो गई है ।
लोग या तो कृपा करते हैं या खुशामद करते हैं
लोग या तो ईर्ष्या करते हैं या चुगली खाते हैं
लोग या तो शिष्टाचार करते हैं या खिसियाते हैं
लोग या तो पश्चाताप करते हैं या घिघियाते हैं
न कोई तारीफ़ करता है न कोई बुराई करता है
न कोई हँसता है न कोई रोता है
न कोई प्यार करता है न कोई नफ़रत
लोग या तो दया करते हैं या घमंड
दुनिया एक फँफुदियायी हुई-चीज़ हो गई है ।
लोग कुछ नहीं करते जो करना चाहिए तो लोग करते क्या हैं
यही तो सवाल है कि लोग करते क्या हैं अगर कुछ करते हैं
लोग सिर्फ़ लोग हैं, तमाम लोग, मार तमाम लोग
लोग ही लोग हैं चारों तरफ़ लोग, लोग, लोग
मुँह बाये हुए लोग और आँख चुँधियाये हुए लोग
कुढ़ते हुए लोग और बिराते हुए लोग
खुजलाते हुए लोग और सहलाते हुए लोग
दुनिया एक बजबजायी हुई-सी चीज़ हो गई है ।