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"दो-चार गाम / निदा फ़ाज़ली" के अवतरणों में अंतर

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(हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी.....)
 
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दो-चार गाम राह को
 
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हमवार देखना
 
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फिर हर क़दम पे इक नयी
 
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दीवार देखना |
 
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आँखों की रौशनी से है
 
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हर संग आइना
 
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हर आईने में खुद को
 
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गुनाहगार देखना |
 
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हर आदमी में होते हैं
 
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दस-बीस आदमी
 
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जिसको भी देखना हो
 
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कई बार देखना |
 
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मैदाँ की हार-जीत तो
 
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क़िस्मत की बात है
 
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टूटी है जिसके हाथ में
 
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तलवार देखना |
 
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दरिया के उस किनारे
 
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सितारे भी फूल भी
 
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दरिया चढ़ा हुआ हो तो
 
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उस पार देखना |
 
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अच्छी नहीं है शहर के
 
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रस्तों की दोस्ती
 
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आँगन में फैल जाए न
 
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बाज़ार देखना.....!
 
बाज़ार देखना.....!

17:00, 17 जनवरी 2012 का अवतरण

दो-चार गाम राह को

हमवार देखना

फिर हर क़दम पे इक नयी

दीवार देखना |


आँखों की रौशनी से है

हर संग आइना

हर आईने में खुद को

गुनाहगार देखना |


हर आदमी में होते हैं

दस-बीस आदमी

जिसको भी देखना हो

कई बार देखना |


मैदाँ की हार-जीत तो

क़िस्मत की बात है

टूटी है जिसके हाथ में

तलवार देखना |


दरिया के उस किनारे

सितारे भी फूल भी

दरिया चढ़ा हुआ हो तो

उस पार देखना |


अच्छी नहीं है शहर के

रस्तों की दोस्ती

आँगन में फैल जाए न

बाज़ार देखना.....!