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"मान रे ! मान मान, मन मान / शिवदीन राम जोशी" के अवतरणों में अंतर
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एक बार सौ बार हेरकर, खोज हृदय में नहीं देर कर, | एक बार सौ बार हेरकर, खोज हृदय में नहीं देर कर, | ||
मिल जायेंगे ब्रह्म राम हैं, सत्य करो पहचान। | मिल जायेंगे ब्रह्म राम हैं, सत्य करो पहचान। | ||
− | लगा प्रीत कबहूं | + | लगा प्रीत कबहूं ना छूटे, राम नाम रस क्यूं ना लूटे, |
जनम जनम आनंद मिलेगा, करो राम गुण गान। | जनम जनम आनंद मिलेगा, करो राम गुण गान। | ||
शिवदीन सतगुरू प्यार देरहे, सब सारन का सार देरहे, | शिवदीन सतगुरू प्यार देरहे, सब सारन का सार देरहे, | ||
काया माया छलकर सबका, हर लेती है प्रान। | काया माया छलकर सबका, हर लेती है प्रान। | ||
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21:36, 23 जनवरी 2012 का अवतरण
{{KKRachana |रचनाकार=शिवदीन राम जोशी
मान रे! मान मान, मन मान।
कैसे भी तो मान मनन कर, धर मन उर में ध्यान।
क्या आनंद दुनियां में हेरे, राम नाम ले सांझ सवेरे,
परमानंद हृदय में खोजो, हैं अन्दर भगवान । (घट-घट में भगवान)
एक बार सौ बार हेरकर, खोज हृदय में नहीं देर कर,
मिल जायेंगे ब्रह्म राम हैं, सत्य करो पहचान।
लगा प्रीत कबहूं ना छूटे, राम नाम रस क्यूं ना लूटे,
जनम जनम आनंद मिलेगा, करो राम गुण गान।
शिवदीन सतगुरू प्यार देरहे, सब सारन का सार देरहे,
काया माया छलकर सबका, हर लेती है प्रान।
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