"प्रात भयौ, जागौ गोपाल / सूरदास" के अवतरणों में अंतर
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूरदास }} प्रात भयौ, जागौ गोपाल ।<br> नवल सुंदरी आईं, बोलत ...) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 9: | पंक्ति 9: | ||
दरसन कौं ठाढ़ी ब्रजवनिता, गूँथि कुसुम बनमाल ॥<br> | दरसन कौं ठाढ़ी ब्रजवनिता, गूँथि कुसुम बनमाल ॥<br> | ||
मुखहि धौइ सुंदर बलिहारी, करहु कलेऊ लाल ।<br> | मुखहि धौइ सुंदर बलिहारी, करहु कलेऊ लाल ।<br> | ||
− | सूरदास प्रभु आनँद के निधि, अंबुज-नैन बिसाल ॥<br> | + | सूरदास प्रभु आनँद के निधि, अंबुज-नैन बिसाल ॥<br><br> |
भावार्थ :-- (मैया कहती हैं -) `हे गोपाल! सबेरा हो गया, अब जागो । व्रजकीसभी नवयुवती सुन्दरी गोपियाँ तुम्हें पुकारती हुई आ गयी हैं । सूर्योदय हो गया,चन्द्रमाका प्रकाश क्षीण हो गया, तमालके तरुण वृक्ष फूल उठे, व्रजकी गोपियाँ फूलोंकी वनमाला गूँथकर तुम्हारे दर्शनके लिये खड़ी हैं । मेरे लाल! अपने सुन्दर मुख को धोकर कलेऊ करो, मैं तुमपर बलिहारी हूँ ।' सूरदासजी कहते हैं कि मेरे स्वामीकमलके समान विशाल लोचनवाले तथा आनन्दकी निधि हैं । (उनकी निद्रामें भी अद्भुतशोभा और आनन्द है ।) | भावार्थ :-- (मैया कहती हैं -) `हे गोपाल! सबेरा हो गया, अब जागो । व्रजकीसभी नवयुवती सुन्दरी गोपियाँ तुम्हें पुकारती हुई आ गयी हैं । सूर्योदय हो गया,चन्द्रमाका प्रकाश क्षीण हो गया, तमालके तरुण वृक्ष फूल उठे, व्रजकी गोपियाँ फूलोंकी वनमाला गूँथकर तुम्हारे दर्शनके लिये खड़ी हैं । मेरे लाल! अपने सुन्दर मुख को धोकर कलेऊ करो, मैं तुमपर बलिहारी हूँ ।' सूरदासजी कहते हैं कि मेरे स्वामीकमलके समान विशाल लोचनवाले तथा आनन्दकी निधि हैं । (उनकी निद्रामें भी अद्भुतशोभा और आनन्द है ।) |
19:20, 25 सितम्बर 2007 का अवतरण
प्रात भयौ, जागौ गोपाल ।
नवल सुंदरी आईं, बोलत तुमहि सबै ब्रजबाल ॥
प्रगट्यौ भानु, मंद भयौ उड़पति, फूले तरुन तमाल ।
दरसन कौं ठाढ़ी ब्रजवनिता, गूँथि कुसुम बनमाल ॥
मुखहि धौइ सुंदर बलिहारी, करहु कलेऊ लाल ।
सूरदास प्रभु आनँद के निधि, अंबुज-नैन बिसाल ॥
भावार्थ :-- (मैया कहती हैं -) `हे गोपाल! सबेरा हो गया, अब जागो । व्रजकीसभी नवयुवती सुन्दरी गोपियाँ तुम्हें पुकारती हुई आ गयी हैं । सूर्योदय हो गया,चन्द्रमाका प्रकाश क्षीण हो गया, तमालके तरुण वृक्ष फूल उठे, व्रजकी गोपियाँ फूलोंकी वनमाला गूँथकर तुम्हारे दर्शनके लिये खड़ी हैं । मेरे लाल! अपने सुन्दर मुख को धोकर कलेऊ करो, मैं तुमपर बलिहारी हूँ ।' सूरदासजी कहते हैं कि मेरे स्वामीकमलके समान विशाल लोचनवाले तथा आनन्दकी निधि हैं । (उनकी निद्रामें भी अद्भुतशोभा और आनन्द है ।)