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"ख़ुश्बू भरे वो बाग़ गुलाबों के खो गए.. / श्रद्धा जैन" के अवतरणों में अंतर
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क़िस्से वो इंक़लाबी, किताबों के खो गए | क़िस्से वो इंक़लाबी, किताबों के खो गए | ||
− | + | तारीख़ मुफ़लिसी ने लिखी है कुछ इस तरह | |
मिलते नहीं निशान नवाबों के, खो गए | मिलते नहीं निशान नवाबों के, खो गए | ||
19:27, 20 फ़रवरी 2012 का अवतरण
जितने महल बनाए थे ख़्वाबों के, खो गए
ख़ुश्बू भरे वो बाग़ गुलाबों के खो गए
हर बोलती ज़बान, कहीं जा के सो गई
क़िस्से वो इंक़लाबी, किताबों के खो गए
तारीख़ मुफ़लिसी ने लिखी है कुछ इस तरह
मिलते नहीं निशान नवाबों के, खो गए
उलझन में घिर गया है, हर इक शख़्स शहर का
अब सिलसिले भी शोख़ जवाबों के खो गए
बच्चे जो खिलखिला के हँसे तो मुझे लगा
सुलगे हुए जो दिन थे अज़ाबों के, खो गए