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20:11, 28 सितम्बर 2007 का अवतरण
यह सुख सुनि हरषीं ब्रजनारी । देखन कौं धाईं बनवारी ॥
कोउ जुवती आई , कोउ आवति । कोउ उठि चलति, सुनत सुख पावति ॥
घर-घर होति अनंद-बधाई । सूरदास प्रभु की बलि जाई ॥
यह आनन्द-संवाद (कि कन्हाई ने आज स्वयं करवट ले ली है) सुनकर व्रजकी स्त्रियाँ हर्षित हो गयीं । वे वनमाली श्यामसुन्दर को देखने दौड़ पड़ीं। कोई युवती (नन्दभवन में) आ गयी है, कोई आ रही है, कोई उठकर चली है, कोई समाचार सुनते ही आनन्दमग्न हो रही है । घर-घर आनन्द-बधाई बँट रही है । सूरदास अपने प्रभुपर बलिहारी जाता है ।