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"पूर्वा पर / सोम ठाकुर" के अवतरणों में अंतर

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लोहे से झल गई सलाखें  
 
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पिघल गये घेरे बाँहों के।
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परत-दर-परत चढ़ते साये  
 
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कपड़ों भर तनी अर्गनी  
 
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नाप गई अमरूदी कोण  
 
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टूटी मुंडेर टिकी कोहनी  
 
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धूप-चाँदनी तो वक्तव्य हुए झूठे  
 
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छत की ख़ामोश सभाओं के।
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रेंग-रेंग जाती है कातर  
 
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फाइलों लदे हाथों पर  
 
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रहा सिर्फ़ इंतज़ार बस का  
 
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जल डूबे फुटपाथों पर  
 
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हर तो हैं कैद कतारों मे  
 
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बागी हैं पुरवा के झोंके।
बागी हैं पुरवा के झोंके ।
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11:23, 24 फ़रवरी 2012 के समय का अवतरण

लोहे से झल गई सलाखें
पिघल गये घेरे बाँहों के।

परत-दर-परत चढ़ते साये
कपड़ों भर तनी अर्गनी
नाप गई अमरूदी कोण
टूटी मुंडेर टिकी कोहनी

धूप-चाँदनी तो वक्तव्य हुए झूठे
छत की ख़ामोश सभाओं के।

रेंग-रेंग जाती है कातर
फाइलों लदे हाथों पर
रहा सिर्फ़ इंतज़ार बस का
जल डूबे फुटपाथों पर
 
हर तो हैं कैद कतारों मे
बागी हैं पुरवा के झोंके।