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"गोद खिलावति कान्ह सुनी, बड़भागिनि हो नँदरानी / सूरदास" के अवतरणों में अंतर

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सुना है कि महाभाग्यवती श्रीनन्दरानी कन्हैयाको गोदमें लेकर खेलाती थीं । लालकामुख तो आनंदकी निधि (कोष) है, उसकी शोभाका वर्णन नहीं किया जा सकता । उनके गुण अपार हैं, वेद और शास्त्रोंके द्वारा भी उनके विस्तारकावर्णन नहीं हो सकता है ।सूरदासजी कहते हैं कि मेरे ऐसे स्वामीको गोदमें लेकर यशोदाजी उन्हें देख-देखकरमुसकराती (हर्षित होती) थी ।
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सुना है कि महाभाग्यवती श्रीनन्दरानी कन्हैया को गोद में लेकर खेलाती थीं । लाल का मुख तो आनंद की निधि (कोष) है, उसकी शोभा का वर्णन नहीं किया जा सकता । उनके गुण अपार हैं, वेद और शास्त्रों के द्वारा भी उनके विस्तार का वर्णन नहीं हो सकता है । सूरदास जी कहते हैं कि मेरे ऐसे स्वामी को गोद में लेकर यशोदा जी उन्हें देख-देखकर मुसकराती (हर्षित होती) थी ।

22:52, 28 सितम्बर 2007 का अवतरण

राग कान्हरौ


गोद खिलावति कान्ह सुनी, बड़भागिनि हो नँदरानी ।
आनँद की निधि मुख जु लाल कौ, छबि नहिं जाति बखानी ॥
गुन अपार बिस्तार परत नहिं कहि निगमागम-बानी ।
सूरदास प्रभु कौं लिए जसुमति,चितै-चितै मुसुकानी ॥


सुना है कि महाभाग्यवती श्रीनन्दरानी कन्हैया को गोद में लेकर खेलाती थीं । लाल का मुख तो आनंद की निधि (कोष) है, उसकी शोभा का वर्णन नहीं किया जा सकता । उनके गुण अपार हैं, वेद और शास्त्रों के द्वारा भी उनके विस्तार का वर्णन नहीं हो सकता है । सूरदास जी कहते हैं कि मेरे ऐसे स्वामी को गोद में लेकर यशोदा जी उन्हें देख-देखकर मुसकराती (हर्षित होती) थी ।