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"एक अकेला अंगूठा / विजय गुप्त" के अवतरणों में अंतर
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− | |रचनाकार=विजय गुप्त
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− | |संग्रह=शब्दों की ज़मीन / विजय गुप्त
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− | <poem>
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− | एक अकेले अंगूठे ने
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− | वसीयत कर दी सारी अंगूठियां
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− | उंगलियों के नाम
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− | रोका, गालों पे लुढ़कते हुए
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− | आंसू की असंख्य बूंदों को
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− | एक अकेले अंगूठे ने
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− | उंगलियों के गासे में भरा हुनर
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− | तलहथ्थियों को दी बित्ता भर लंबाई
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− | हथेलियों को भर मुट्ठी क्षमता
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− | आकाश के ललाट पर बढ़कर लगाया
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− | विजयी भव का सूर्य-तिलक
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− | अंगूठे को पिस्टन बनाकर
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− | हमने भी कई बार उगलवाया
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− | डबडबाए हुए नल के हलक से पानी
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− | शरारती हुए तो काटी चिकोटी
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− | मस्ती में आए तो बजाई चुटकी
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− | अफसोस!
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− | इसी अंगूठे से लिया गया
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− | कोरे कागज पर काला टिप्पा
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− | रची गई हर बार
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− | जीने के हक से बेदखल करने की साजिश
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− | अंगूठे का दर्द वो ही जानें
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− | जिन्होंने जमीन में धंसाया अंगूठा
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− | हल के फाल की तरह
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− | और खांच दी चाहतों की क्यारियां
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− | एकलव्य का कटा हुआ अंगूठा
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− | दर्द के संबोधन-चिन्ह की तरह
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− | एक बार जरूर खड़ा हुआ होगा
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− | द्रोण के समक्ष भी
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− | इधर अंगूठे ने भी बदले तेवर
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− | दाएं-बाएं डोलकर सिर्फ दिखाता नहीं ठेंगा
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− | बल्कि सफलीभूत होने पर तनकर कहता- डन
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− | ज्यों नाचता लट्टू लोहे के गुने पर
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− | घूमती रहेगी पृथ्वी
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− | अकेले अंगूठे के टेक पर।
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− | [[]]
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21:15, 18 मार्च 2012 के समय का अवतरण