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"गगन में बदरा / अवनीश सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर
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13:31, 19 मार्च 2012 के समय का अवतरण
बड़े दिनों के बाद गगन में
आये बदरा छाये
आते ही झट लगा खेलने
सूरज आँख-मिचौनी
घुले-मिले तो ऐसे-जैसे
मिसरी के संग नैनी
बाट जोहते रहे बटोही
धूप-छाँव के साये
हुआ मगन मन गाये कजरी
गाये बारहमासी
लहकी-थिरकी है पुरवइया
देख पक्षाभ-कपासी
औचक-भौचक ढ़ोल-मजीरा
मौसम धूम मचाये
करो हरी तुम कोख धरा की
आओ बदरा बरसो
क्या रक्खा है कल करने में
या करने में परसों
उम्मीदों की फसल उगाओ
हम हैं आस लगाये