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"गुडिय़ा (1) / उर्मिला शुक्ल" के अवतरणों में अंतर

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जाने कब और कैसे उसमें बैठ जाती है
 
जाने कब और कैसे उसमें बैठ जाती है
 
गुडिय़ा।
 
गुडिय़ा।
 
दो-बच्ची को जन्म देकर
 
तुष्ट नहींहोता
 
मातृत्व
 
गर्व से उठता नहीं
 
मस्तक
 
अतृप्त मन
 
चाहने लगता है
 
कुछ और
 
गुडिय़ों के ढेर पर
 
बैठा उसे
 
करने लगता है उसके
 
गुडिय़ा बन जाने का
 
इंतजार
 
  
 
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14:01, 25 मार्च 2012 के समय का अवतरण


गुडिय़ा से खेलती बच्ची
पैठना चाहती है उसमें जानना चाहती है उसका
गुडिय़ापन
मगर
जाने कब और कैसे उसमें बैठ जाती है
गुडिय़ा।