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"अपने मन की पीर / सुभाष नीरव" के अवतरणों में अंतर

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('सुभाष नीरव (१) लाख छिपायें हम भले, अपने मन की पीर। सब...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
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(१)
 
(१)
 
लाख छिपायें हम भले, अपने मन की पीर।
 
लाख छिपायें हम भले, अपने मन की पीर।
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कुछ तो ऐसा कीजिए, रहे सभी को याद॥
 
कुछ तो ऐसा कीजिए, रहे सभी को याद॥
  
(६)
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बहुत कठिन है प्रेम पथ, चलिये सोच विचार।
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विष का प्याला बिन पिये, मिले ना सच्चा प्यार॥
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(७)
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भूख प्यास सब मिट गई, लागा ऐसा रोग।
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हुई प्रेम में बांवरी, कहते हैं सब लोग।।
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(८)
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बहुत गिनाते तुम रहे, दूजों के गुणदोष।
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अपने भीतर झाँक लो, उड़ जायेंगे होश॥
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(९)
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बोल बड़े क्यों बोलते, करते क्यूँ अभिमान।
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धूप-छाँव सी ज़िन्दगी, रहे न एक समान॥
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(१०)
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बूढ़ी माँ दिल में रखे, सिर्फ यही अरमान।
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मुख बेटे का देख लूँ, तब निकलें ये प्राण॥
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13:58, 28 मार्च 2012 का अवतरण

(१)
लाख छिपायें हम भले, अपने मन की पीर।
सबकुछ तो कह जाय है, इन नयनों का नीर॥

(२)
दूर हुईं मायूसियाँ, कटी चैन से रात।
मेरे सर पर जब रखा, माँ ने अपना हाथ॥

(३)
बाबुल तेरी बेटियाँ, कुछ दिन की मेहमान ।
आज नहीं तो कल तुझे, करना कन्यादान॥

(४)
पानी बरसा गाँव में, अबकी इतना ज़ोर ।
फ़सल हुई बरबाद सब, बचे न डंगर-ढोर।।

(५)
बुरा भला रह जाय है, इस जीवन के बाद।
कुछ तो ऐसा कीजिए, रहे सभी को याद॥