"छोड़ दूंगा द्वार तक / राजेश शर्मा" के अवतरणों में अंतर
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छोड़ दूंगा द्वार तक, कुछ देर तो ठहरो अभी, | छोड़ दूंगा द्वार तक, कुछ देर तो ठहरो अभी, | ||
− | हे सुवासित वायु मेरी पीर को छू कर जाना . | + | हे सुवासित वायु,मेरी पीर को छू कर जाना . |
शब्द में बिखरी हुई जागीर को छू कर जाना. | शब्द में बिखरी हुई जागीर को छू कर जाना. | ||
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नेह भीगा याद, सम्बोधन किसी का है अभी. | नेह भीगा याद, सम्बोधन किसी का है अभी. | ||
मन बंधा इस छोर से उस छोर तक जिस बन्ध से, | मन बंधा इस छोर से उस छोर तक जिस बन्ध से, | ||
− | हे विभाजित वायु उस ज़ंजीर को | + | हे विभाजित,वायु उस ज़ंजीर को छू कर जाना. |
− | एक बिन बरसी घटा को बांध रखना है अभी, | + | एक बिन बरसी घटा को,बांध रखना है अभी, |
एक रसवंती व्यथा का, मान रखना है अभी. | एक रसवंती व्यथा का, मान रखना है अभी. | ||
− | मान-सुमन की पंखुरी की कोर से छलका है जो, | + | मान-सुमन की पंखुरी की,कोर से छलका है जो, |
− | हे प्रफुल्लित वायु | + | हे प्रफुल्लित वायु,पावन नीर को छू कर जाना. |
− | आज फिर अवसाद तिल-तिल कर कटा है रात भर, | + | आज फिर अवसाद,तिल-तिल कर कटा है रात भर, |
− | आज फिर प्रासाद सपनों में बना है रात भर. | + | आज फिर प्रासाद,सपनों में बना है रात भर. |
मत ठहरना कल्पना के रंगमहलों में कभी. | मत ठहरना कल्पना के रंगमहलों में कभी. | ||
− | हे समाहित वायु बस प्राचीर को छू कर जाना. | + | हे समाहित वायु,बस प्राचीर को छू कर जाना. |
− | चार वेदों में भरा आभास लेकर जाइये , | + | चार वेदों में भरा आभास,लेकर जाइये , |
− | क्रोंच-वध के बाद का इतिहास लेकर जाइये. | + | क्रोंच-वध के बाद का इतिहास, लेकर जाइये. |
साथ में रसखान, तुलसी, सूर, मीरा, जायसी. | साथ में रसखान, तुलसी, सूर, मीरा, जायसी. | ||
हे निनादित वायु ग़ालिब, मीर को छू कर जाना. | हे निनादित वायु ग़ालिब, मीर को छू कर जाना. | ||
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17:59, 9 अप्रैल 2012 के समय का अवतरण
छोड़ दूंगा द्वार तक, कुछ देर तो ठहरो अभी,
हे सुवासित वायु,मेरी पीर को छू कर जाना .
शब्द में बिखरी हुई जागीर को छू कर जाना.
एक मरणासन्न, सम्वेदन किसी का है अभी,
नेह भीगा याद, सम्बोधन किसी का है अभी.
मन बंधा इस छोर से उस छोर तक जिस बन्ध से,
हे विभाजित,वायु उस ज़ंजीर को छू कर जाना.
एक बिन बरसी घटा को,बांध रखना है अभी,
एक रसवंती व्यथा का, मान रखना है अभी.
मान-सुमन की पंखुरी की,कोर से छलका है जो,
हे प्रफुल्लित वायु,पावन नीर को छू कर जाना.
आज फिर अवसाद,तिल-तिल कर कटा है रात भर,
आज फिर प्रासाद,सपनों में बना है रात भर.
मत ठहरना कल्पना के रंगमहलों में कभी.
हे समाहित वायु,बस प्राचीर को छू कर जाना.
चार वेदों में भरा आभास,लेकर जाइये ,
क्रोंच-वध के बाद का इतिहास, लेकर जाइये.
साथ में रसखान, तुलसी, सूर, मीरा, जायसी.
हे निनादित वायु ग़ालिब, मीर को छू कर जाना.