भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"माँ की याद / वीरेन डंगवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=दुष्चक्र में सृष्टा / वीरेन डंगवाल | |संग्रह=दुष्चक्र में सृष्टा / वीरेन डंगवाल | ||
}} | }} | ||
− | + | <poem> | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
क्या देह बनाती है माँओं को ? | क्या देह बनाती है माँओं को ? | ||
− | |||
क्या समय ? या प्रतीक्षा ? या वह खुरदरी राख | क्या समय ? या प्रतीक्षा ? या वह खुरदरी राख | ||
− | |||
जिससे हम बीन निकालते हैं अस्थियाँ ? | जिससे हम बीन निकालते हैं अस्थियाँ ? | ||
− | |||
या यह कि हम मनुष्य हैं और एक | या यह कि हम मनुष्य हैं और एक | ||
− | |||
:::सामाजिक-सांस्कृतिक परम्परा है हमारी | :::सामाजिक-सांस्कृतिक परम्परा है हमारी | ||
− | |||
जिसमें माँएँ सबसे ऊपर खड़ी की जाती रही हैं | जिसमें माँएँ सबसे ऊपर खड़ी की जाती रही हैं | ||
− | |||
बर्फ़ीली चोटी पर, | बर्फ़ीली चोटी पर, | ||
− | |||
और सबसे आगे | और सबसे आगे | ||
− | |||
फ़ायरिंग स्क्वैड के सामने । | फ़ायरिंग स्क्वैड के सामने । | ||
+ | </poem> |
16:59, 11 अप्रैल 2012 के समय का अवतरण
क्या देह बनाती है माँओं को ?
क्या समय ? या प्रतीक्षा ? या वह खुरदरी राख
जिससे हम बीन निकालते हैं अस्थियाँ ?
या यह कि हम मनुष्य हैं और एक
सामाजिक-सांस्कृतिक परम्परा है हमारी
जिसमें माँएँ सबसे ऊपर खड़ी की जाती रही हैं
बर्फ़ीली चोटी पर,
और सबसे आगे
फ़ायरिंग स्क्वैड के सामने ।