"बीस साल / मंगलेश डबराल" के अवतरणों में अंतर
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बीस साल बाद एक दिन | बीस साल बाद एक दिन | ||
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पता चलता है मैं बीस साल से यहाँ जमा हुआ हूँ | पता चलता है मैं बीस साल से यहाँ जमा हुआ हूँ | ||
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आता-जाता हुआ या कुछ देर रुककर | आता-जाता हुआ या कुछ देर रुककर | ||
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किसी चमत्कार की प्रतीक्षा करता हुआ | किसी चमत्कार की प्रतीक्षा करता हुआ | ||
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सुबह खिड़की खोलता हूँ किसी उम्मीद में | सुबह खिड़की खोलता हूँ किसी उम्मीद में | ||
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सामने एक जैसे मकानों की क़तार है | सामने एक जैसे मकानों की क़तार है | ||
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उनमें एक जैसे लोग रहते हैं | उनमें एक जैसे लोग रहते हैं | ||
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एक जैसा जीवन बिताते हुए | एक जैसा जीवन बिताते हुए | ||
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कोई जाता है तो उसकी जगह वैसा ही | कोई जाता है तो उसकी जगह वैसा ही | ||
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एक और आदमी रहने आ जाता है | एक और आदमी रहने आ जाता है | ||
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दोस्तों के चेहरे भी नहीं बदले | दोस्तों के चेहरे भी नहीं बदले | ||
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वे उसी तरह सख़्त हैं उनकी संवेदनायें वैसी ही अस्तव्यस्त | वे उसी तरह सख़्त हैं उनकी संवेदनायें वैसी ही अस्तव्यस्त | ||
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कोई हँसता है तो वही पुरानी हँसी | कोई हँसता है तो वही पुरानी हँसी | ||
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मेरे भीतर ऎसी भावनाओं का एक भंडार है | मेरे भीतर ऎसी भावनाओं का एक भंडार है | ||
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जिन्हें समझ पाना कठिन है | जिन्हें समझ पाना कठिन है | ||
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जिन्हें प्रकट करने पर शायद एक जंगल की आवाज़ सुनाई दे | जिन्हें प्रकट करने पर शायद एक जंगल की आवाज़ सुनाई दे | ||
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यह मालूम करना भी मुश्किल है कि इस संसार में | यह मालूम करना भी मुश्किल है कि इस संसार में | ||
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क्या-क्या काम मैं कर सकता हूँ | क्या-क्या काम मैं कर सकता हूँ | ||
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बच्चे बड़े हो रहे हैं मेरे सामने | बच्चे बड़े हो रहे हैं मेरे सामने | ||
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और अपने आप | और अपने आप | ||
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उनका अपना उल्लास है अपनी ऊँचाई | उनका अपना उल्लास है अपनी ऊँचाई | ||
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वे भी मेरे बारे में ज़्यादा नहीं जानते | वे भी मेरे बारे में ज़्यादा नहीं जानते | ||
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वे सिर्फ़ देखते हैं कि मैं नाराज़ हूँ | वे सिर्फ़ देखते हैं कि मैं नाराज़ हूँ | ||
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और काँप रहा हूँ और मेरा चेहरा बिगड़ गया है | और काँप रहा हूँ और मेरा चेहरा बिगड़ गया है | ||
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और आँखें निस्तेज हैं | और आँखें निस्तेज हैं | ||
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जिनसे कभी प्रेम बरसता था | जिनसे कभी प्रेम बरसता था | ||
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मैं कहना चाहता हूँ | मैं कहना चाहता हूँ | ||
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यह सब कितनी बड़ी मूर्खता है और मैं इसमें | यह सब कितनी बड़ी मूर्खता है और मैं इसमें | ||
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बीस साल से कैद हूँ | बीस साल से कैद हूँ | ||
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झल्लाया हुआ खिड़की के बाहर निगाह डालता हूँ | झल्लाया हुआ खिड़की के बाहर निगाह डालता हूँ | ||
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एक युवक एक युवती कोई बीस साल के | एक युवक एक युवती कोई बीस साल के | ||
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हँसते हुए दूर तक दौड़ते जाते हैं | हँसते हुए दूर तक दौड़ते जाते हैं | ||
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उन्हें देखता हो जाता हूँ चुप. | उन्हें देखता हो जाता हूँ चुप. | ||
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(रचनाकाल : 1990) | (रचनाकाल : 1990) | ||
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17:53, 12 अप्रैल 2012 के समय का अवतरण
बीस साल बाद एक दिन
पता चलता है मैं बीस साल से यहाँ जमा हुआ हूँ
आता-जाता हुआ या कुछ देर रुककर
किसी चमत्कार की प्रतीक्षा करता हुआ
सुबह खिड़की खोलता हूँ किसी उम्मीद में
सामने एक जैसे मकानों की क़तार है
उनमें एक जैसे लोग रहते हैं
एक जैसा जीवन बिताते हुए
कोई जाता है तो उसकी जगह वैसा ही
एक और आदमी रहने आ जाता है
दोस्तों के चेहरे भी नहीं बदले
वे उसी तरह सख़्त हैं उनकी संवेदनायें वैसी ही अस्तव्यस्त
कोई हँसता है तो वही पुरानी हँसी
मेरे भीतर ऎसी भावनाओं का एक भंडार है
जिन्हें समझ पाना कठिन है
जिन्हें प्रकट करने पर शायद एक जंगल की आवाज़ सुनाई दे
यह मालूम करना भी मुश्किल है कि इस संसार में
क्या-क्या काम मैं कर सकता हूँ
बच्चे बड़े हो रहे हैं मेरे सामने
और अपने आप
उनका अपना उल्लास है अपनी ऊँचाई
वे भी मेरे बारे में ज़्यादा नहीं जानते
वे सिर्फ़ देखते हैं कि मैं नाराज़ हूँ
और काँप रहा हूँ और मेरा चेहरा बिगड़ गया है
और आँखें निस्तेज हैं
जिनसे कभी प्रेम बरसता था
मैं कहना चाहता हूँ
यह सब कितनी बड़ी मूर्खता है और मैं इसमें
बीस साल से कैद हूँ
झल्लाया हुआ खिड़की के बाहर निगाह डालता हूँ
एक युवक एक युवती कोई बीस साल के
हँसते हुए दूर तक दौड़ते जाते हैं
उन्हें देखता हो जाता हूँ चुप.
(रचनाकाल : 1990)