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"रात / मंगलेश डबराल" के अवतरणों में अंतर
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बहुत देर हो गई थी | बहुत देर हो गई थी | ||
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घर जाने का कोई रास्ता नहीं बचा | घर जाने का कोई रास्ता नहीं बचा | ||
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तब एक दोस्त आया | तब एक दोस्त आया | ||
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मेरे साथ मुझे छोड़ने | मेरे साथ मुझे छोड़ने | ||
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अथाह रात थी | अथाह रात थी | ||
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जिसकी कई परतें हमने पार कीं | जिसकी कई परतें हमने पार कीं | ||
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हम एक बाढ़ में डूबने | हम एक बाढ़ में डूबने | ||
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एक आँधी में उड़ने से बचे | एक आँधी में उड़ने से बचे | ||
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हमने एक बहुत पुरानी चीख़ सुनी | हमने एक बहुत पुरानी चीख़ सुनी | ||
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बन्दूकें देखीं जो हमेशा | बन्दूकें देखीं जो हमेशा | ||
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तैयार रहती हैं | तैयार रहती हैं | ||
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किसी ने हमें जगह जगह रोका | किसी ने हमें जगह जगह रोका | ||
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चेतावनी देते हुए | चेतावनी देते हुए | ||
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हमने देखे आधे पागल और भिखारी | हमने देखे आधे पागल और भिखारी | ||
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तारों की ओर टकटकी बाँधे हुए | तारों की ओर टकटकी बाँधे हुए | ||
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मैंने कहा दोस्त मुझे थामो | मैंने कहा दोस्त मुझे थामो | ||
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बचाओ गिरने से | बचाओ गिरने से | ||
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तेज़ी से ले चलो | तेज़ी से ले चलो | ||
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लोहे और ख़ून की नदी के पार | लोहे और ख़ून की नदी के पार | ||
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सुबह मैं उठा | सुबह मैं उठा | ||
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मैंने सुनी दोस्त की आवाज़ | मैंने सुनी दोस्त की आवाज़ | ||
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17:54, 12 अप्रैल 2012 के समय का अवतरण
बहुत देर हो गई थी
घर जाने का कोई रास्ता नहीं बचा
तब एक दोस्त आया
मेरे साथ मुझे छोड़ने
अथाह रात थी
जिसकी कई परतें हमने पार कीं
हम एक बाढ़ में डूबने
एक आँधी में उड़ने से बचे
हमने एक बहुत पुरानी चीख़ सुनी
बन्दूकें देखीं जो हमेशा
तैयार रहती हैं
किसी ने हमें जगह जगह रोका
चेतावनी देते हुए
हमने देखे आधे पागल और भिखारी
तारों की ओर टकटकी बाँधे हुए
मैंने कहा दोस्त मुझे थामो
बचाओ गिरने से
तेज़ी से ले चलो
लोहे और ख़ून की नदी के पार
सुबह मैं उठा
मैंने सुनी दोस्त की आवाज़
और ली एक गहरी साँस ।
(1989)