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"शेष जीवन / मंगलेश डबराल" के अवतरणों में अंतर
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पुराने बक्से के ऊपर कई बक्से हैं | पुराने बक्से के ऊपर कई बक्से हैं | ||
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वे गिरते नहीं | वे गिरते नहीं | ||
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खिड़की के सामने मेज़ पर | खिड़की के सामने मेज़ पर | ||
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फ़्यूज़ हुए बल्ब रखे हैं | फ़्यूज़ हुए बल्ब रखे हैं | ||
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कैलेंडरों में छपे सुंदर बच्चों और | कैलेंडरों में छपे सुंदर बच्चों और | ||
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जीर्णशीर्ण देवताओं की तस्वीरें वैसे ही चिपकी हैं | जीर्णशीर्ण देवताओं की तस्वीरें वैसे ही चिपकी हैं | ||
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उनके पीछे दीवारों की पपड़ियाँ | उनके पीछे दीवारों की पपड़ियाँ | ||
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गिरती रहती हैं | गिरती रहती हैं | ||
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काँच से मढ़ी तस्वीरें उनकी कहानी कहती हैं | काँच से मढ़ी तस्वीरें उनकी कहानी कहती हैं | ||
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जो कभी-कभी लौटते हैं | जो कभी-कभी लौटते हैं | ||
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या नहीं लौटते | या नहीं लौटते | ||
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कीलों पर टँगे कपड़े | कीलों पर टँगे कपड़े | ||
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अपना शेष जीवन जीते हैं | अपना शेष जीवन जीते हैं | ||
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दरवाज़ा खोलकर भीतर आने पर | दरवाज़ा खोलकर भीतर आने पर | ||
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सन्नाटा एक कमरे से दूसरे कमरे में जाता है. | सन्नाटा एक कमरे से दूसरे कमरे में जाता है. | ||
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(रचनाकाल : 1992) | (रचनाकाल : 1992) | ||
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17:56, 12 अप्रैल 2012 के समय का अवतरण
पुराने बक्से के ऊपर कई बक्से हैं
वे गिरते नहीं
खिड़की के सामने मेज़ पर
फ़्यूज़ हुए बल्ब रखे हैं
कैलेंडरों में छपे सुंदर बच्चों और
जीर्णशीर्ण देवताओं की तस्वीरें वैसे ही चिपकी हैं
उनके पीछे दीवारों की पपड़ियाँ
गिरती रहती हैं
काँच से मढ़ी तस्वीरें उनकी कहानी कहती हैं
जो कभी-कभी लौटते हैं
या नहीं लौटते
कीलों पर टँगे कपड़े
अपना शेष जीवन जीते हैं
दरवाज़ा खोलकर भीतर आने पर
सन्नाटा एक कमरे से दूसरे कमरे में जाता है.
(रचनाकाल : 1992)