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"काया / गीत चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
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तुम इतनी देर तक घूरते रहे अंधेरे को | तुम इतनी देर तक घूरते रहे अंधेरे को |
16:37, 16 अप्रैल 2012 के समय का अवतरण
तुम इतनी देर तक घूरते रहे अंधेरे को
कि तुम्हारी पुतलियों का रंग काला हो गया
किताबों को ओढा इस तरह
कि शरीर कागज़ हो गया
कहते रहे मौत आए तो इस तरह
जैसे पानी को आती है
वह बदल जाता है भाप में
आती है पेड़ को
वह दरवाज़ा बन जाता है
जैसे आती है आग को
वह राख बन जाती है
तुम गाय का थान बन जाना
दूध बनकर बरसना
भाप बनकर चलाना बड़े-बड़े इंजन
भात पकाना
जिस रास्ते को हमेशा बंद रहने का शाप मिला
उस पर दरवाज़ा बनकर खुलना
राख से मांजना बीमार माँ की पलंग के नीचे रखे बासन
तुम एक तीली जलाना
उसे देर तक घूरना