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"उसकी ज़िद-2 / पवन करण" के अवतरणों में अंतर

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हैन्ड-बैग को एक तरफ़ रखते हुए वह बोली —
 
हैन्ड-बैग को एक तरफ़ रखते हुए वह बोली —
मैं इस बारिश को अपने बैग में भर लेना चाहती हूँ
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मैं इस बारिश को अपने बैग में भर लेना चाहती हूँ
मैंने कहा — बिल्कुल तुम्हें किसने रोका है
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मैंने कहा — बिल्कुल, तुम्हें किसने रोका है ?
उसने कहा — नहीँ तुम्हारे साथ भीगते हुए
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उसने कहा — नहीँ, तुम्हारे साथ भीगते हुए
इस बैग में बारिश को भरना चाहती हूँ मैं
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इस बैग में बारिश को भरना चाहती हूँ मैं
  
मैंने देखा कि बाहर धूप खिली हुई थी
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मैंने देखा कि बाहर धूप खिली हुई थी
मुझे उस पर हँसी आई लेकिन वह नहीं मानी
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मुझे उस पर हँसी आई, लेकिन वह नहीं मानी
और मुझे खींचते हुए बाहर ले आई
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और मुझे खींचते हुए बाहर ले आई
कुछ देर मैं हँसता रहा उस पर
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कुछ देर मैं हँसता रहा उस पर
 
मगर धीरे-धीरे मुझे महसूस हुआ
 
मगर धीरे-धीरे मुझे महसूस हुआ
 
जैसे मैं सचमुच बरसात में खड़ा हूँ
 
जैसे मैं सचमुच बरसात में खड़ा हूँ
 
और भीग रहा हूँ बारिश में
 
और भीग रहा हूँ बारिश में
और वह तो भीगने में मगन थी ही
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और वह तो भीगने में मगन थी ही
  
 
फिर हम दोनो देर तक बारिश में भीगते
 
फिर हम दोनो देर तक बारिश में भीगते
और अपने हाथों से उसे बैग में भरते रहे
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और अपने हाथों से उसे बैग में भरते रहे
 
फिर हम बैग और ख़ुद को तर-बतर लिए पानी से
 
फिर हम बैग और ख़ुद को तर-बतर लिए पानी से
लौट आए भीतर, भीतर आकर
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लौट आए भीतर भीतर आकर
 
सबसे पहले उसने अपने बालों का पानी झटका
 
सबसे पहले उसने अपने बालों का पानी झटका
और मैंने हथेलियों से अपने गीले मुँह को साफ किया
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और मैंने हथेलियों से अपने गीले मुँह को साफ किया
  
 
यह सुन कर किसी को आश्चर्य हो सकता है
 
यह सुन कर किसी को आश्चर्य हो सकता है
 
कि मैंने इस तरह कितनी ही दफ़ा उसकी जिद पर
 
कि मैंने इस तरह कितनी ही दफ़ा उसकी जिद पर
 
उसके बैग में भरा ऐसी बारिश को
 
उसके बैग में भरा ऐसी बारिश को
जिसका दूर- दूर तक नामोनिशान नहीं था
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जिसका दूर- दूर तक नामोनिशान नहीं था
  
सिरफ भरा ही नहीं कई दफ़ा तो मैंने
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सिरफ भरा ही नहीं कई दफ़ा तो मैंने
बचाकर उसकी आँख उसके बैग में भरे पानी को
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बचाकर उसकी आँख, उसके बैग में भरे पानी को
सूख से जूझते पड़ोसी देश में उलट भी दिया
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सूख से जूझते पड़ोसी देश में उलट भी दिया
 
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12:45, 23 अप्रैल 2012 के समय का अवतरण

हैन्ड-बैग को एक तरफ़ रखते हुए वह बोली —
मैं इस बारिश को अपने बैग में भर लेना चाहती हूँ ।
मैंने कहा — बिल्कुल, तुम्हें किसने रोका है ?
उसने कहा — नहीँ, तुम्हारे साथ भीगते हुए
इस बैग में बारिश को भरना चाहती हूँ मैं ।

मैंने देखा कि बाहर धूप खिली हुई थी ।
मुझे उस पर हँसी आई, लेकिन वह नहीं मानी
और मुझे खींचते हुए बाहर ले आई ।
कुछ देर मैं हँसता रहा उस पर ।
मगर धीरे-धीरे मुझे महसूस हुआ
जैसे मैं सचमुच बरसात में खड़ा हूँ
और भीग रहा हूँ बारिश में
और वह तो भीगने में मगन थी ही ।

फिर हम दोनो देर तक बारिश में भीगते
और अपने हाथों से उसे बैग में भरते रहे ।
फिर हम बैग और ख़ुद को तर-बतर लिए पानी से
लौट आए भीतर । भीतर आकर
सबसे पहले उसने अपने बालों का पानी झटका
और मैंने हथेलियों से अपने गीले मुँह को साफ किया ।

यह सुन कर किसी को आश्चर्य हो सकता है
कि मैंने इस तरह कितनी ही दफ़ा उसकी जिद पर
उसके बैग में भरा ऐसी बारिश को
जिसका दूर- दूर तक नामोनिशान नहीं था ।

सिरफ भरा ही नहीं । कई दफ़ा तो मैंने
बचाकर उसकी आँख, उसके बैग में भरे पानी को
सूख से जूझते पड़ोसी देश में उलट भी दिया ।