भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"नन्हा हाइकु / सुधा गुप्ता" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | {KKGlobal}} | + | {{KKGlobal}} |
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार= सुधा गुप्ता | |रचनाकार= सुधा गुप्ता |
19:39, 21 मई 2012 का अवतरण
कच्ची नींद में
आया एक हाइकु
फिर खो गया
बड़ी बेचैन हुई
ढूँढती रही
जागते बीती रात
पर न मिला
बड़ा शरारती है
ख़ूब छकाता
लुका-छिपी का खेल
उसे है भाता
करता खिलवाड़
मन मौजी है
जी-भर के सताता
नींद उड़ा के
वो ख़ुद छिप जाता
बड़ी लाचारी
सोच-सोच के हारी
हो गई भोर
पाखी करते शोर
अरे, क्या हुआ
कहाँ वह खो गया?
अधूरी नींद
बोझिल माथा लिये
भारी मन से
सुबह आ ही गई...
अब जो मिला
कर लूँगी कैद मैं
शब्द-कारा में
डर सिर्फ़ यही है
फिसल जाये
कहीं वक्त-धारा में
ओ मेरे नन्हें!
तुझे तरस आता
तो छोड़ कर
तू यूँ बिला न जाता
आ गले लग जाता
-0-