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"गिलहरी / जगदीश व्योम" के अवतरणों में अंतर
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चुन-चुन खूब बनाती। | चुन-चुन खूब बनाती। | ||
गिलहरी दिनभर आती-जाती।। | गिलहरी दिनभर आती-जाती।। | ||
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दो बच्चे हैं छोटे-छोटे | दो बच्चे हैं छोटे-छोटे | ||
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अपना दूध पिलाती। | अपना दूध पिलाती। | ||
गिलहरी दिनभर आती-जाती।। | गिलहरी दिनभर आती-जाती।। | ||
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खिड़की पर जब कौआ आता | खिड़की पर जब कौआ आता | ||
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बच्चे खाने को ललचाता | बच्चे खाने को ललचाता | ||
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पूँछ उठाकर चिक्-चिक्-चिक्-चिक् | पूँछ उठाकर चिक्-चिक्-चिक्-चिक् | ||
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करके उसे डराती। | करके उसे डराती। | ||
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गिलहरी दिनभर आती-जाती।। | गिलहरी दिनभर आती-जाती।। | ||
21:47, 21 मई 2012 का अवतरण
गिलहरी दिन भर आती-जाती
फटे-पुराने कपड़े लत्ते
धागे और ताश के पत्ते
सुतली, कागज, रुई, मोंमियाँ
अगड़म-बगड़म लाती।
गिलहरी दिनभर आती-जाती।।
ठीक रसोईघर के पीछे
शीशे की खिड़की के नीचे
`एस्किमो' सा गोल-गोल घर
चुन-चुन खूब बनाती।
गिलहरी दिनभर आती-जाती।।
दो बच्चे हैं छोटे-छोटे
ठीक अँगूठे जिनते मोटे
बड़े प्यार से उन दोनों को
अपना दूध पिलाती।
गिलहरी दिनभर आती-जाती।।
खिड़की पर जब कौआ आता
बच्चे खाने को ललचाता
पूँछ उठाकर चिक्-चिक्-चिक्-चिक्
करके उसे डराती।
गिलहरी दिनभर आती-जाती।।
भोली-भाली बहुत लजीली
छोटी-सी प्यारी शरमीली
देर तलक शीशे से चिपकी
बच्चों से बतलाती।
गिलहरी दिनभर आती-जाती।।