भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"है हरि नाम कौ आधार / सूरदास" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूरदास }} राग केदारा है हरि नाम कौ आधार। और इहिं कलिक...)
 
पंक्ति 22: पंक्ति 22:
 
भावार्थ :- `हरि-भजन' ही मुक्ति का सर्वोत्कृष्ट और तत्काल फलदायक साधन है।
 
भावार्थ :- `हरि-भजन' ही मुक्ति का सर्वोत्कृष्ट और तत्काल फलदायक साधन है।
 
इसलिए `सब तज, हरि भज' ही मुख्य है।
 
इसलिए `सब तज, हरि भज' ही मुख्य है।
 +
 +
  
 
शब्दार्थ :- आधार = भरोसा। बिधि =वेदोक्त कर्म-कांड से आशय है। ब्यौहार =क्रिया,  
 
शब्दार्थ :- आधार = भरोसा। बिधि =वेदोक्त कर्म-कांड से आशय है। ब्यौहार =क्रिया,  
 
साधन। सुक =शुकदेव। इतौई =इतना ही। गुन =गुण-सत्व, रज और तमोगुण। जार =जाल।
 
साधन। सुक =शुकदेव। इतौई =इतना ही। गुन =गुण-सत्व, रज और तमोगुण। जार =जाल।
 
भवभार =जन्म मरण के चक्र से अभिप्राय है।
 
भवभार =जन्म मरण के चक्र से अभिप्राय है।

01:11, 3 अक्टूबर 2007 का अवतरण

राग केदारा


है हरि नाम कौ आधार।

और इहिं कलिकाल नाहिंन रह्यौ बिधि-ब्यौहार॥

नारदादि सुकादि संकर कियौ यहै विचार।

सकल स्रुति दधि मथत पायौ इतौई घृत-सार॥

दसहुं दिसि गुन कर्म रोक्यौ मीन कों ज्यों जार।

सूर, हरि कौ भजन करतहिं गयौ मिटि भव-भार॥


भावार्थ :- `हरि-भजन' ही मुक्ति का सर्वोत्कृष्ट और तत्काल फलदायक साधन है। इसलिए `सब तज, हरि भज' ही मुख्य है।


शब्दार्थ :- आधार = भरोसा। बिधि =वेदोक्त कर्म-कांड से आशय है। ब्यौहार =क्रिया, साधन। सुक =शुकदेव। इतौई =इतना ही। गुन =गुण-सत्व, रज और तमोगुण। जार =जाल। भवभार =जन्म मरण के चक्र से अभिप्राय है।