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इलाहाबाद में निराला / बोधिसत्व

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पर कोलाहाल में गूँज रहा था बस<br>
निराला...निराला...निराला ।<br><br>
'''2.<br><br>
वह निराला नहीं था तो<br>
निराला जैसा क्यों<br>
कुहरे पर क्यों<br>
लिख रहा था ।<br><br>
'''3.<br><br>
धीरे-धीरे छँटी भीड़<br>
अब वह था और दिशाएँ थीं<br>
था दूर-दूर तक अंधियारा<br>
अशरण था वह दुत्कारा ।<br><br>
'''4.<br><br>
जाने को जा सकता था घर<br>
पर मन में बैठ गया था डर<br>
बूढे़ पीपल के तरु तर<br>
चुपचाप सो गया वह थक कर ।<br><br>
'''5.<br><br>
रात गए जागा वह बूढ़ा<br>
खिसका अपनी जगह से<br>
अंधकार में वह क्यों रोया था<br>
उसने सचमुच में कुछ खोया था ।<br><br>
'''6.<br><br>
कई दिन हुए घर से निकले<br>
पर कोई उसे ढूंढ़ने नहीं निकला<br>
मरता है तो मरने दो<br>
बस अपनी नौका को तरने दो ।<br><br>
'''7.<br><br>
उसकी गाँठ में कुछ नहीं था<br>
वह किसी को नहीं दे सकता था कुछ भी<br>
उस अंधेरे गंगा के कछार में<br>
उसकी खोज में झांकने वाला कौन था ।<br><br>
'''9.<br><br>
मैं उस बेघर को ला सकता था घर<br>
चलो न लाता तो<br>
उसके घावों को सहला तो सकता था<br>
पूछ तो सकता था कि वह रोता क्यों है<br>
वह अपने को अंधकार में खोता क्यों है<br>
पर मैं भी दर्शक था<br>
देखता रह<br>
उस बूढ़े को<br>
रोते हुए<br>
देखता रहा उसे अंधकार में खोते हुए ।<br><br>
'''10.<br><br>
धरती का यह कौन-सा कोना है<br>
जहाँ बूढे़ रोते हैं<br>
घरों से निकल कर<br>
रोती हैं औरतें चूल्हों में सुलग कर<br>
वह कौन-सा नगर कौन-सा शहर है<br>
जहाँ लोगों को चुप कराने का<br>
चलन नहीं रह बाक़ी<br>
रातों में जाग कर रोती है<br>
अब भी<br>
प्रेमचन्द की बूढ़ी काकी<br>
जहाँ रोता है निराला-सा वह दढ़ियल<br><br>
'''11.<br><br>
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