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"उल्लस शशि ने क्रीड़ा में / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
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− | उल्लस शशि ने क्रीड़ा में, बीतीं कुछ विह्वल | + | उल्लस शशि ने क्रीड़ा में, बीतीं कुछ विह्वल घड़ियाँ। |
− | (कब तक न बनी ही जातीं उस प्रणय-लड़ी की | + | (कब तक न बनी ही जातीं उस प्रणय-लड़ी की कड़ियाँ।) |
रवि के आने पर शशि ने ली बिदा निशा से सत्वर। | रवि के आने पर शशि ने ली बिदा निशा से सत्वर। | ||
चल दिया लिये प्राणों में निज सफल प्रेम का निर्झर! | चल दिया लिये प्राणों में निज सफल प्रेम का निर्झर! | ||
'निशि को व्यक्तित्व नहीं' है, 'मैं ही हूँ उस का जीवन', | 'निशि को व्यक्तित्व नहीं' है, 'मैं ही हूँ उस का जीवन', | ||
− | 'ये ओस-बिन्दु हैं उस के बिखरे | + | 'ये ओस-बिन्दु हैं उस के बिखरे मूर्च्छित आँसू-कन,' |
क्या देखा यह सब शशि ने? | क्या देखा यह सब शशि ने? | ||
जब उस के पुरुष-प्रणय को साफल्य दिया प्रकृति ने? | जब उस के पुरुष-प्रणय को साफल्य दिया प्रकृति ने? |
17:53, 3 अगस्त 2012 के समय का अवतरण
उल्लस शशि ने क्रीड़ा में, बीतीं कुछ विह्वल घड़ियाँ।
(कब तक न बनी ही जातीं उस प्रणय-लड़ी की कड़ियाँ।)
रवि के आने पर शशि ने ली बिदा निशा से सत्वर।
चल दिया लिये प्राणों में निज सफल प्रेम का निर्झर!
'निशि को व्यक्तित्व नहीं' है, 'मैं ही हूँ उस का जीवन',
'ये ओस-बिन्दु हैं उस के बिखरे मूर्च्छित आँसू-कन,'
क्या देखा यह सब शशि ने?
जब उस के पुरुष-प्रणय को साफल्य दिया प्रकृति ने?
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