भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"साँचा:KKPoemOfTheWeek" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
<td rowspan=2> | <td rowspan=2> | ||
<div style="font-size:15px; font-weight:bold">सप्ताह की कविता</div> | <div style="font-size:15px; font-weight:bold">सप्ताह की कविता</div> | ||
− | <div style="font-size:15px;">'''शीर्षक : | + | <div style="font-size:15px;">'''शीर्षक : वतन का गीत '''रचनाकार:''' [[गोरख पाण्डेय]] </div> |
</td> | </td> | ||
</tr> | </tr> | ||
</table><pre style="text-align:left;overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px"> | </table><pre style="text-align:left;overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px"> | ||
− | + | हमारे वतन की नई ज़िन्दगी हो | |
− | + | नई ज़िन्दगी इक मुकम्मिल ख़ुशी हो | |
− | + | नया हो गुलिस्ताँ नई बुलबुलें हों | |
− | + | मुहब्बत की कोई नई रागिनी हो | |
− | + | न हो कोई राजा न हो रंक कोई | |
− | + | सभी हों बराबर सभी आदमी हों | |
− | + | न ही हथकड़ी कोई फ़सलों को डाले | |
− | + | हमारे दिलों की न सौदागरी हो | |
− | + | ज़ुबानों पे पाबन्दियाँ हों न कोई | |
− | + | निगाहों में अपनी नई रोशनी हो | |
− | + | न अश्कों से नम हो किसी का भी दामन | |
− | + | न ही कोई भी क़ायदा हिटलरी हो | |
− | + | सभी होंठ आज़ाद हों मयक़दे में | |
− | + | कि गंगो-जमन जैसी दरियादिली हो | |
− | + | नये फ़ैसले हों नई कोशिशें हों | |
− | + | नयी मंज़िलों की कशिश भी नई हो | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
</pre></center></div> | </pre></center></div> |
13:19, 9 अगस्त 2012 का अवतरण
सप्ताह की कविता
शीर्षक : वतन का गीत रचनाकार: गोरख पाण्डेय
|
हमारे वतन की नई ज़िन्दगी हो नई ज़िन्दगी इक मुकम्मिल ख़ुशी हो नया हो गुलिस्ताँ नई बुलबुलें हों मुहब्बत की कोई नई रागिनी हो न हो कोई राजा न हो रंक कोई सभी हों बराबर सभी आदमी हों न ही हथकड़ी कोई फ़सलों को डाले हमारे दिलों की न सौदागरी हो ज़ुबानों पे पाबन्दियाँ हों न कोई निगाहों में अपनी नई रोशनी हो न अश्कों से नम हो किसी का भी दामन न ही कोई भी क़ायदा हिटलरी हो सभी होंठ आज़ाद हों मयक़दे में कि गंगो-जमन जैसी दरियादिली हो नये फ़ैसले हों नई कोशिशें हों नयी मंज़िलों की कशिश भी नई हो