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"चाँदनी जी लो / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर

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10:45, 13 अगस्त 2012 के समय का अवतरण

शरद चाँदनी बरसी
अँजुरी भर कर पी लो।

ऊँघ रहे हैं तारे सिहरी सरसी
ओ प्रिय कुमुद ताकते अनझिप
क्षण में तुम भी जी लो।

सींच रही है ओस हमारे गाने
घने कुहासे में झिपते चेहरे पहचाने
खम्भों पर बत्तियाँ खड़ी हैं सीठी
ठिठक गये हैं मानो पल-छिन आने-जाने।

उठी ललक हिय उमँगा अनकहनी अलसानी
जगी लालसा मीठी
खड़े रहो ढिंग, गहो हाथ पाहुन मनभाने,
ओ प्रिय, रहो साथ
भर-भर कर अँजुरी पी लो

बरसी शरद चाँदनी
मेरा अन्त:स्पन्दन तुम भी क्षण-क्षण जी लो!
शरद चाँदनी बरसी अँजुरी भर कर पी लो।

दिल्ली, 22 अक्टूबर, 1950