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10:45, 13 अगस्त 2012 के समय का अवतरण
...यही तो गा रहे हैं पेड़
यही सरिता की लहर में काँपता है
यही धारा के प्रपातित बिन्दुओं का हास है।
...इसी से मर्मरित होंगी लताएँ,
सिहर कर झर जाएँगी कलियाँ अदेखी
मेघ घन होंगे, बलाकाएँ उड़ेंगी,
झाडिय़ों में चिहुँक कर पंछी
उभारे लोम, सहसा बिखर कर उड़ जाएँगे
ओस चमकेगी विकीरित रंग का उल्लास ले पहली किरण में।
...फैली धुन्ध में बाँधे हुए है अखिल संसृति
नियम में शिव के यही तो नाम...
यही तो नाम-जिसे उच्चारते ये ओठ आतुर
झिझक जाते हैं।
...पास आओ
जागरित दो मानसों के संस्फुरण में
नाम वह संगीत बन कर मुखर होता है।
कहाँ हैं दोनों तुम्हारे हाथ-सम्पुटित कर के मुझे दो :
कोकनद का कोष वह गुंजरित होगा नाम से-
उस नाम से...
भेड़घाट (जबलपुर), 4 जनवरी, 1951