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− | + | जंग लगा लोहा पाँव में चुभता है | |
− | + | तो मैं टिटनेस का इंजेक्शन लगवाता हूँ | |
− | + | लोहे से बचने के लिए नहीं | |
− | + | उसके जंग के सँक्रमण से बचने के लिए | |
− | + | मैं तो बचाकर रखना चाहता हूँ | |
− | + | उस लोहे को जो मेरे ख़ून में है | |
− | + | जीने के लिए इस संसार में | |
− | + | रोज़ लोहा लेना पड़ता है | |
− | + | एक लोहा रोटी के लिए लेना पड़ता है | |
− | + | दूसरा इज़्ज़त के साथ | |
− | + | उसे खाने के लिए | |
− | + | एक लोहा पुरखों के बीज को | |
− | + | बचाने के लिए लेना पड़ता है | |
− | + | दूसरा उसे उगाने के लिए | |
− | + | मिट्टी में, हवा में, पानी में | |
− | + | पालक में और ख़ून में जो लोहा है | |
− | + | यही सारा लोहा काम आता है एक दिन | |
− | + | फूल जैसी धरती को बचाने में | |
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02:09, 17 अगस्त 2012 का अवतरण
सप्ताह की कविता
शीर्षक : लोहा रचनाकार: एकांत श्रीवास्तव
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जंग लगा लोहा पाँव में चुभता है तो मैं टिटनेस का इंजेक्शन लगवाता हूँ लोहे से बचने के लिए नहीं उसके जंग के सँक्रमण से बचने के लिए मैं तो बचाकर रखना चाहता हूँ उस लोहे को जो मेरे ख़ून में है जीने के लिए इस संसार में रोज़ लोहा लेना पड़ता है एक लोहा रोटी के लिए लेना पड़ता है दूसरा इज़्ज़त के साथ उसे खाने के लिए एक लोहा पुरखों के बीज को बचाने के लिए लेना पड़ता है दूसरा उसे उगाने के लिए मिट्टी में, हवा में, पानी में पालक में और ख़ून में जो लोहा है यही सारा लोहा काम आता है एक दिन फूल जैसी धरती को बचाने में