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"पहाड़ / लाल्टू" के अवतरणों में अंतर

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|संग्रह= एक झील थी बर्फ़ की / लाल्टू
 
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00:10, 23 फ़रवरी 2008 का अवतरण

1.

पहाड़ को कठोर मत समझो
पहाड़ को नोचने पर
पहाड़ के आँसू बह आते हैं
सड़कें करवट बदल
चलते-चलते रुक जाती हैं

पहाड़ को
दूर से देखते हो तो
पहाड़ ऊँचा दिखता है

करीब आओ
पहाड़ तुम्हें ऊपर खींचेगा
पहाड़ के ज़ख्मी सीने में
रिसते धब्बे देख
चीखो मत

पहाड़ को नंगा करते वक्त
तुमने सोचा न था
पहाड़ के जिस्म में भी
छिपे रहस्य हैं।

2.

इसलिए अब
अकेली चट्टान को
पहाड़ मत समझो

पहाड़ तो पूरी भीड़ है
उसकी धड़कनें
अलग-अलग गति से
बढ़ती-घटती रहती हैं

अकेले पहाड़ का ज़माना
बीत गया
अब हर ओर
पहाड़ ही पहाड़ हैं।

3.

पहाड़ों पर रहने वाले लोग
पहाड़ों को पसंद नहीं करते
पहाड़ों के साथ
हँस लेते हैं
रो लेते हैं
सोचते हैं
पहाड़ों पर आधी ज़िंदगी गुज़र गई
बाकी भी गुज़र जाएगी।

(रचनाकाल : 1988)