भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कोदूराम दलित / परिचय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
|रचनाकार=कोदूराम दलित
 
|रचनाकार=कोदूराम दलित
 
}}
 
}}
<poem>कोदूराम दलित का जन्म सन् 1910 में जिला दुर्ग के टिकरी गांव में हुआ था। गांधीवादी कोदूराम प्राइमरी स्कूल के मास्टर थे उनकी रचनायें करीब 800 (आठ सौ) है पर ज्यादातर अप्रकाशित हैं। कवि सम्मेलन में कोदूराम जी अपनी हास्य व्यंग्य रचनाएँ सुनाकर सबको बेहद हँसाते थे। उनकी रचनाओं में छत्तीसगढ़ी लोकोक्तियों का प्रयोग बड़े स्वाभाविक और सुन्दर तरीके से हुआ करता था। उनकी रचनायें - 1. सियानी गोठ 2. कनवा समधी 3. अलहन 4. दू मितान 5. हमर देस 6. कृष्ण जन्म 7. बाल निबंध 8. कथा कहानी 9. छत्तीसगढ़ी शब्द भंडार अउ लोकोक्ति। उनकी रचनाओं में छत्तीसगढ़ का गांव का जीवन बड़ा सुन्दर झलकता है।
+
{{KKJeevani
 +
|रचनाकार=कोदूराम दलित
 +
|चित्र=KoduramDalit.jpg
 +
}}
 +
 
 +
कोदूराम दलित का जन्म सन् 1910 में जिला दुर्ग के टिकरी गांव में हुआ था। गांधीवादी कोदूराम प्राइमरी स्कूल के मास्टर थे उनकी रचनायें करीब 800 (आठ सौ) है पर ज्यादातर अप्रकाशित हैं। कवि सम्मेलन में कोदूराम जी अपनी हास्य व्यंग्य रचनाएँ सुनाकर सबको बेहद हँसाते थे। उनकी रचनाओं में छत्तीसगढ़ी लोकोक्तियों का प्रयोग बड़े स्वाभाविक और सुन्दर तरीके से हुआ करता था। उनकी रचनायें - 1. सियानी गोठ 2. कनवा समधी 3. अलहन 4. दू मितान 5. हमर देस 6. कृष्ण जन्म 7. बाल निबंध 8. कथा कहानी 9. छत्तीसगढ़ी शब्द भंडार अउ लोकोक्ति। उनकी रचनाओं में छत्तीसगढ़ का गांव का जीवन बड़ा सुन्दर झलकता है।
  
 
'''एक और परिचय'''
 
'''एक और परिचय'''
   कवि कोदूराम 'दलित' का जन्म ५ मार्च १९१० को ग्राम टिकरी(अर्जुन्दा),जिला  दुर्ग  में हुआ। आपके पिता श्री राम भरोसा कृषक थे। उनका बचपन ग्रामीण परिवेश में खेतिहर मज़दूरों के बीच बीता। उन्होंने मिडिल स्कूल अर्जुन्दा में प्रारंभिक  शिक्षा प्राप्त की। तत्पश्चात नार्मल स्कूल, रायपुर, नार्मल स्कूल, बिलासपुर में शिक्षा ग्रहण की।  स्काउटिंग, चित्रकला तथा साहित्य विशारद में वे सदा आगे-आगे रहे। वे १९३१ से १९६७ तक आर्य कन्या गुरुकुल, नगर पालिका परिषद् तथा शिक्षा विभाग, दुर्ग की प्राथमिक  शालाओं  में  अध्यापक  और  प्रधानाध्यापक के रूप  में कार्यरत  रहे।  
+
    
 +
कवि कोदूराम 'दलित' का जन्म ५ मार्च १९१० को ग्राम टिकरी(अर्जुन्दा),जिला  दुर्ग  में हुआ। आपके पिता श्री राम भरोसा कृषक थे। उनका बचपन ग्रामीण परिवेश में खेतिहर मज़दूरों के बीच बीता। उन्होंने मिडिल स्कूल अर्जुन्दा में प्रारंभिक  शिक्षा प्राप्त की। तत्पश्चात नार्मल स्कूल, रायपुर, नार्मल स्कूल, बिलासपुर में शिक्षा ग्रहण की।  स्काउटिंग, चित्रकला तथा साहित्य विशारद में वे सदा आगे-आगे रहे। वे १९३१ से १९६७ तक आर्य कन्या गुरुकुल, नगर पालिका परिषद् तथा शिक्षा विभाग, दुर्ग की प्राथमिक  शालाओं  में  अध्यापक  और  प्रधानाध्यापक के रूप  में कार्यरत  रहे।  
  
 
ग्राम अर्जुंदा में आशु कवि श्री पीला लाल चिनोरिया जी से इन्हें काव्य-प्रेरणा मिली। फिर वर्ष १९२६ में इन्होंने कविताएँ लिखनी शुरू कर दीं। इनकी रचनाएँ लगातार छत्तीसगढ़ के समाचार-पत्रों एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं।  इनके पहले काव्य-संग्रह का नाम है — ’सियानी गोठ’ (१९६७) फिर दूसरा संग्रह है — ’बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय’ (२०००)। भोपाल ,इंदौर, नागपुर, रायपुर आदि आकाशवाणी-केन्द्रों से इनकी कविताओं तथा लोक-कथाओं का प्रसारण अक्सर होता रहा है। मध्य प्रदेश शासन, सूचना-प्रसारण विभाग, म०प्र०हिंदी साहित्य अधिवेशन, विभिन्न साहित्यिक सम्मलेन, स्कूल-कालेज के स्नेह सम्मलेन, किसान मेला, राष्ट्रीय पर्व तथा गणेशोत्सव में इन्होंने कई बार काव्य-पाठ किया।  सिंहस्थ मेला (कुम्भ), उज्जैन में भारत शासन  द्वारा आयोजित कवि सम्मलेन में महाकौशल क्षेत्र से कवि के रूप में भी आपको आमंत्रित किया जाता था। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के नगर आगमन पर भी ये अपना काव्यपाठ करते थे।
 
ग्राम अर्जुंदा में आशु कवि श्री पीला लाल चिनोरिया जी से इन्हें काव्य-प्रेरणा मिली। फिर वर्ष १९२६ में इन्होंने कविताएँ लिखनी शुरू कर दीं। इनकी रचनाएँ लगातार छत्तीसगढ़ के समाचार-पत्रों एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं।  इनके पहले काव्य-संग्रह का नाम है — ’सियानी गोठ’ (१९६७) फिर दूसरा संग्रह है — ’बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय’ (२०००)। भोपाल ,इंदौर, नागपुर, रायपुर आदि आकाशवाणी-केन्द्रों से इनकी कविताओं तथा लोक-कथाओं का प्रसारण अक्सर होता रहा है। मध्य प्रदेश शासन, सूचना-प्रसारण विभाग, म०प्र०हिंदी साहित्य अधिवेशन, विभिन्न साहित्यिक सम्मलेन, स्कूल-कालेज के स्नेह सम्मलेन, किसान मेला, राष्ट्रीय पर्व तथा गणेशोत्सव में इन्होंने कई बार काव्य-पाठ किया।  सिंहस्थ मेला (कुम्भ), उज्जैन में भारत शासन  द्वारा आयोजित कवि सम्मलेन में महाकौशल क्षेत्र से कवि के रूप में भी आपको आमंत्रित किया जाता था। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के नगर आगमन पर भी ये अपना काव्यपाठ करते थे।
पंक्ति 17: पंक्ति 23:
 
कवि दलित की दृष्टि में कला का आदर्श  'व्यवहार विदे'  न होकर  'लोक-व्यवहार उद्दीपनार्थम' था. हिंदी और छत्तीसगढ़ी दोनों ही रचनाओं  में भाषा परिष्कृत, परिमार्जित, साहित्यिक और व्याकरण सम्मत है. आपका शब्द-चयन असाधारण है. आपके प्रकृति-चित्रण में भाषा में चित्रोपमता,ध्वन्यात्मकता के साथ नाद-सौन्दर्य के दर्शन होते हैं. इनमें शब्दमय चित्रों का विलक्षण प्रयोग हुआ है. आपने नए युग में भी तुकांत और गेय छंदों को अपनाया है. भाषा और उच्चारण पर आपका अद्भुत अधिकार रहा है.कवि श्री कोदूराम "दलित" का निधन २८ सितम्बर १९६७ को हुआ।  
 
कवि दलित की दृष्टि में कला का आदर्श  'व्यवहार विदे'  न होकर  'लोक-व्यवहार उद्दीपनार्थम' था. हिंदी और छत्तीसगढ़ी दोनों ही रचनाओं  में भाषा परिष्कृत, परिमार्जित, साहित्यिक और व्याकरण सम्मत है. आपका शब्द-चयन असाधारण है. आपके प्रकृति-चित्रण में भाषा में चित्रोपमता,ध्वन्यात्मकता के साथ नाद-सौन्दर्य के दर्शन होते हैं. इनमें शब्दमय चित्रों का विलक्षण प्रयोग हुआ है. आपने नए युग में भी तुकांत और गेय छंदों को अपनाया है. भाषा और उच्चारण पर आपका अद्भुत अधिकार रहा है.कवि श्री कोदूराम "दलित" का निधन २८ सितम्बर १९६७ को हुआ।  
 
''' —अरुण कुमार निगम'''
 
''' —अरुण कुमार निगम'''
 
</poem>
 

15:32, 23 सितम्बर 2012 का अवतरण

कोदूराम दलित की कविता कोश में रचनाएँ
KoduramDalit.jpg

कोदूराम दलित का जन्म सन् 1910 में जिला दुर्ग के टिकरी गांव में हुआ था। गांधीवादी कोदूराम प्राइमरी स्कूल के मास्टर थे उनकी रचनायें करीब 800 (आठ सौ) है पर ज्यादातर अप्रकाशित हैं। कवि सम्मेलन में कोदूराम जी अपनी हास्य व्यंग्य रचनाएँ सुनाकर सबको बेहद हँसाते थे। उनकी रचनाओं में छत्तीसगढ़ी लोकोक्तियों का प्रयोग बड़े स्वाभाविक और सुन्दर तरीके से हुआ करता था। उनकी रचनायें - 1. सियानी गोठ 2. कनवा समधी 3. अलहन 4. दू मितान 5. हमर देस 6. कृष्ण जन्म 7. बाल निबंध 8. कथा कहानी 9. छत्तीसगढ़ी शब्द भंडार अउ लोकोक्ति। उनकी रचनाओं में छत्तीसगढ़ का गांव का जीवन बड़ा सुन्दर झलकता है।

एक और परिचय

कवि कोदूराम 'दलित' का जन्म ५ मार्च १९१० को ग्राम टिकरी(अर्जुन्दा),जिला दुर्ग में हुआ। आपके पिता श्री राम भरोसा कृषक थे। उनका बचपन ग्रामीण परिवेश में खेतिहर मज़दूरों के बीच बीता। उन्होंने मिडिल स्कूल अर्जुन्दा में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। तत्पश्चात नार्मल स्कूल, रायपुर, नार्मल स्कूल, बिलासपुर में शिक्षा ग्रहण की। स्काउटिंग, चित्रकला तथा साहित्य विशारद में वे सदा आगे-आगे रहे। वे १९३१ से १९६७ तक आर्य कन्या गुरुकुल, नगर पालिका परिषद् तथा शिक्षा विभाग, दुर्ग की प्राथमिक शालाओं में अध्यापक और प्रधानाध्यापक के रूप में कार्यरत रहे।

ग्राम अर्जुंदा में आशु कवि श्री पीला लाल चिनोरिया जी से इन्हें काव्य-प्रेरणा मिली। फिर वर्ष १९२६ में इन्होंने कविताएँ लिखनी शुरू कर दीं। इनकी रचनाएँ लगातार छत्तीसगढ़ के समाचार-पत्रों एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं। इनके पहले काव्य-संग्रह का नाम है — ’सियानी गोठ’ (१९६७) फिर दूसरा संग्रह है — ’बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय’ (२०००)। भोपाल ,इंदौर, नागपुर, रायपुर आदि आकाशवाणी-केन्द्रों से इनकी कविताओं तथा लोक-कथाओं का प्रसारण अक्सर होता रहा है। मध्य प्रदेश शासन, सूचना-प्रसारण विभाग, म०प्र०हिंदी साहित्य अधिवेशन, विभिन्न साहित्यिक सम्मलेन, स्कूल-कालेज के स्नेह सम्मलेन, किसान मेला, राष्ट्रीय पर्व तथा गणेशोत्सव में इन्होंने कई बार काव्य-पाठ किया। सिंहस्थ मेला (कुम्भ), उज्जैन में भारत शासन द्वारा आयोजित कवि सम्मलेन में महाकौशल क्षेत्र से कवि के रूप में भी आपको आमंत्रित किया जाता था। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के नगर आगमन पर भी ये अपना काव्यपाठ करते थे।

आप राष्ट्र भाषा प्रचार समिति वर्धा की दुर्ग इकाई के सक्रिय सदस्य रहे। दुर्ग जिला साहित्य समिति के उपमंत्री, छत्तीसगढ़ साहित्य के उपमंत्री, दुर्ग जिला हरिजन सेवक संघ के मंत्री, भारत सेवक समाज के सदस्य,सहकारी बैंक दुर्ग के एक डायरेक्टर ,म्यु.कर्मचारी सभा नं.४६७, सहकारी बैंक के सरपंच, दुर्ग नगर प्राथमिक शिक्षक संघ के कार्यकारिणी सदस्य, शिक्षक नगर समिति के सदस्य जैसे विभिन्न पदों पर सक्रिय रहते हुए आपने अपने बहु आयामी व्यक्तित्व से राष्ट्र एवं समाज के उत्थान के लिए सदैव कार्य किया है.

आपका हिंदी और छत्तीसगढ़ी साहित्य में गद्य और पद्य दोनों पर सामान अधिकार रहा है. साहित्य की सभी विधाओं यथा कविता, गीत, कहानी ,निबंध, एकांकी, प्रहसन, बाल-पहेली, बाल-गीत, क्रिया-गीत में आपने रचनाएँ की है. आप क्षेत्र विशेष में बंधे नहीं रहे. सारी सृष्टि ही आपकी विषय-वस्तु रही है. आपकी रचनाएँ आज भी प्रासंगिक हैं. आपके काव्य ने उस युग में जन्म लिया जब देश आजादी के लिए संघर्षरत था .आप समय की साँसों की धड़कन को पहचानते थे . अतः आपकी रचनाओं में देश-प्रेम ,त्याग, जन-जागरण, राष्ट्रीयता की भावनाएं युग अनुरूप हैं.आपके साहित्य में नीतिपरकता,समाज सुधार की भावना ,मानवतावादी, समन्वयवादी तथा प्रगतिवादी दृष्टिकोण सहज ही परिलक्षित होता है.

हास्य-व्यंग्य आपके काव्य का मूल स्वर है जो शिष्ट और प्रभावशाली है. आपने रचनाओं में मानव का शोषण करने वाली परम्पराओं का विरोध कर आधुनिक, वैज्ञानिक, समाजवादी और प्रगतिशील दृष्टिकोण से दलित और शोषित वर्ग का प्रतिनिधित्व किया है. आपका नीति-काव्य तथा बाल-साहित्य एक आदर्श ,कर्मठ और सुसंस्कृत पीढ़ी के निर्माण के लिए आज भी प्रासंगिक है.

कवि दलित की दृष्टि में कला का आदर्श 'व्यवहार विदे' न होकर 'लोक-व्यवहार उद्दीपनार्थम' था. हिंदी और छत्तीसगढ़ी दोनों ही रचनाओं में भाषा परिष्कृत, परिमार्जित, साहित्यिक और व्याकरण सम्मत है. आपका शब्द-चयन असाधारण है. आपके प्रकृति-चित्रण में भाषा में चित्रोपमता,ध्वन्यात्मकता के साथ नाद-सौन्दर्य के दर्शन होते हैं. इनमें शब्दमय चित्रों का विलक्षण प्रयोग हुआ है. आपने नए युग में भी तुकांत और गेय छंदों को अपनाया है. भाषा और उच्चारण पर आपका अद्भुत अधिकार रहा है.कवि श्री कोदूराम "दलित" का निधन २८ सितम्बर १९६७ को हुआ। —अरुण कुमार निगम