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मिटने के दिन आज मुझको यह सोच है, | मिटने के दिन आज मुझको यह सोच है, | ||
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00:02, 22 अक्टूबर 2012 के समय का अवतरण
रस तो अनंत था, अंजुरी भर ही पिया,
जी में वसंत था, एक फूल ही दिया।
मिटने के दिन आज मुझको यह सोच है,
कैसे बडे युग में कैसा छोटा जीवन जिया।