"अबकी होली में / जयकृष्ण राय तुषार" के अवतरणों में अंतर
वीनस केशरी (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
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होली में | होली में | ||
आना जी आना | आना जी आना | ||
− | चाहे जो | + | चाहे जो रँग लिए आना । |
भींगेगी देह | भींगेगी देह | ||
मगर याद रहे | मगर याद रहे | ||
− | मन को भी रंग से सजाना | + | मन को भी रंग से सजाना । |
वर्षों से | वर्षों से | ||
− | + | बर्फ़ जमी प्रीति को | |
− | मद्धम सी | + | मद्धम सी आँच पर उबालना, |
जाने क्या | जाने क्या | ||
चुभता है आँखों में | चुभता है आँखों में | ||
− | आना तो | + | आना तो फूँककर निकालना, |
मैं नाचूँगी | मैं नाचूँगी | ||
राधा बनकर | राधा बनकर | ||
− | तू कान्हा | + | तू कान्हा बाँसुरी बजाना । |
आग लगी | आग लगी | ||
जंगल में या | जंगल में या | ||
− | पलाश दहके हैं , | + | पलाश दहके हैं, |
मेरे भी | मेरे भी | ||
− | + | आँगन में | |
− | कुछ गुलाब महके हैं , | + | कुछ गुलाब महके हैं, |
कब तक | कब तक | ||
− | हम रखेंगे | + | हम रखेंगे बाँधकर |
− | + | ख़ुशबू का है कहाँ ठिकाना । | |
लाल हरे | लाल हरे | ||
पीले रंगों भींगी | पीले रंगों भींगी | ||
− | चूनर को धूप में | + | चूनर को धूप में सुखाएँगे, |
तुम मन के | तुम मन के | ||
पंख खोल उड़ना | पंख खोल उड़ना | ||
− | हम मन के पंख को | + | हम मन के पंख को छुपाएँगे , |
मन की हर | मन की हर | ||
− | + | बँधी गाँठ खोलना | |
− | उस दिन तो दरपन हो जाना | + | उस दिन तो दरपन हो जाना । |
हारेंगे हम ही | हारेंगे हम ही | ||
तुम जीतना | तुम जीतना | ||
− | टॉस मगर जोर से उछालना , | + | टॉस मगर जोर से उछालना, |
ओ मांझी | ओ मांझी | ||
− | धार बहुत | + | धार बहुत तेज़ है |
− | मुझे और नाव को सम्हालना , | + | मुझे और नाव को सम्हालना, |
नाव से | नाव से | ||
उतरना जब घाट पर | उतरना जब घाट पर | ||
− | हाथ मेरी ओर भी बढ़ाना | + | हाथ मेरी ओर भी बढ़ाना । |
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13:29, 1 नवम्बर 2012 के समय का अवतरण
होली में
आना जी आना
चाहे जो रँग लिए आना ।
भींगेगी देह
मगर याद रहे
मन को भी रंग से सजाना ।
वर्षों से
बर्फ़ जमी प्रीति को
मद्धम सी आँच पर उबालना,
जाने क्या
चुभता है आँखों में
आना तो फूँककर निकालना,
मैं नाचूँगी
राधा बनकर
तू कान्हा बाँसुरी बजाना ।
आग लगी
जंगल में या
पलाश दहके हैं,
मेरे भी
आँगन में
कुछ गुलाब महके हैं,
कब तक
हम रखेंगे बाँधकर
ख़ुशबू का है कहाँ ठिकाना ।
लाल हरे
पीले रंगों भींगी
चूनर को धूप में सुखाएँगे,
तुम मन के
पंख खोल उड़ना
हम मन के पंख को छुपाएँगे ,
मन की हर
बँधी गाँठ खोलना
उस दिन तो दरपन हो जाना ।
हारेंगे हम ही
तुम जीतना
टॉस मगर जोर से उछालना,
ओ मांझी
धार बहुत तेज़ है
मुझे और नाव को सम्हालना,
नाव से
उतरना जब घाट पर
हाथ मेरी ओर भी बढ़ाना ।