भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मन की जमीन पर.. / संगीता गुप्ता" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संगीता गुप्ता |संग्रह=इस पार उस प...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 38: | पंक्ति 38: | ||
जब तक क़ायम रहेगा | जब तक क़ायम रहेगा | ||
जंगल उगने के सिलसिला | जंगल उगने के सिलसिला | ||
+ | |||
+ | मैं नहीं | ||
+ | एक दिन हारेगा | ||
+ | ज़रुर जंगल | ||
+ | |||
</poem> | </poem> |
20:27, 10 दिसम्बर 2012 के समय का अवतरण
मन की ज़मीन पर
हर सुबह
नागफनी के जंगल
उग आते हैं
अपनी पूरी ताक़त से
सूबह से रात गये तक
जंगल काटती रहती हूँ
जंगल के साफ़ होने तक
एक नीम - बेहोशी
मुझ पर छा जाती हैं
सो जाती हूँ
एक मज़दूर की नींद
अगली सुबह
आँख खुलने पर
एक और जंगल
मुँह चिड़ाता मिलता है मुझे
हारती नहीं मैं भी
पूरी ताक़त से
फिर काटने लगती हूँ
नया जंगल
यह सिलसिला
जारी है
जारी रहे
मैं तब तक
काटती रहूँगी जंगल
जब तक क़ायम रहेगा
जंगल उगने के सिलसिला
मैं नहीं
एक दिन हारेगा
ज़रुर जंगल