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"प्रतिक्रिया / किरण अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

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01:58, 6 जनवरी 2013 के समय का अवतरण

लोग थे हैरान / परेशान
धरती होती जा रही थी
जल-निमग्न

जमुना कसमसा रही थी
अपनी परिधि में
इच्छाएँ थीं
भ्रष्टाचार के पुल-सी भग्न
प्रेयसी की मांसल देह
खो चुकी थी आज अपनी आँच

बन्द
कमरों में भी
लोग काँप रहे थे