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"भूमिका / नीरज दइया" के अवतरणों में अंतर

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05:51, 16 मई 2013 के समय का अवतरण

युवा कवियां री कवितावां बाबत बात करण सूं पैली आगूंच कीं खुलासा जरूरी लखावै। रचनावां मांय रचनाकार न्यारा-न्यारा खोळिया पैरै, उतारै अर बदळै। वो आप रै रचना-संसार मांय आप री ऊमर सूं ओछो अर मोटो होवण रो हुनर पाळै। किणी रचना री बात करां जणै ऊमर री बात बिरथा होया करै। इण पोसाळ मांय ऊमर ढळियां नवो दाखलो लेवण वाळां नैं कांई युवा रचनाकार कैवांला? कोई जवान कै ऊमरवान कवि पगलिया करतो-करतो आपरी ठावी ठौड़ पूग सकै, अर किणी नैं बरसां रा बरस लियां ई कलम नीं तूठै।
                कोई युवा कवि पण जूनी बात कर सकै अर किणी प्रौढ़ कवि री कविता सूं युवा-सौरम आय सकै। आपां जद कोई काम किणी खास दीठ सूं पोळावां कै अंगेजां तद आगूंच कीं पुख्ता काण-कायदा राखणा पड़ै। सींव ई बांधणी पड़ै। अठै युवा कवियां सूं मायनो बरस 1971 पछै जलमिया कवियां सूं तै राखीज्यो है। इण संकलन मांय देस री आजादी रै लगैटगै पचीस बरसां पछै बरस 1972 अर उण पछै जलमिया कवियां री कवितावां एकठ करीजी है। इण युवा पीढी खातर आधुनिक सोच अर संस्कारां री बात इण रूप मांय स्वीकारी जाय सकै कै माईत आजाद भारत मांय नवा संस्कारां साथै आं नैं जवान करिया।
                हिंदी साहित्य इतिहास रै आदिकालीन राजस्थानी कीरत-ग्रंथां अर आजादी रै आंदोलन मांय अठै रै कवियां री भूमिका नैं कदैई कोई नीं बिसराय सकैला! दूजै कानी आपणी कविता रो ओ पण सौभाग रैयो है कै हाल तांई राज-काज री इत्ती अबखायां रै रैवतां ई आ जातरा लगोलग चालू है। अठै आ चरचा करणी बे-ओपती कोनी लखावै कै बिना प्रेरणा अर प्रोत्साहन रै केई-केई रचनाकारां रो बगत परवाण पूरो विगसाव नीं होय सक्यो। कोई कवि-लेखक लिखतो-लिखतो बूढो-अधबूढो होय जावै, तद उणरी सरावणा कै मान-सम्मान में कांई सार है! रचनाकारां रा मंडाण देख’र संभाळ अर अंवेर तो बगतसर ई होवणी चाहीजै।
                नवै जुग अर नवी कविता रै पक्कै आंगणै पांख्यां खोलणिया आं कवियां रै ‘मंडाण’ सूं पचपन कवियां रै इण संकलन मांय बरस 1972 सूं 1995 तांई जलमियां युवा-मनां री कवितावां सूं आपरी ओळख होवैला। लगैटगै चाळीस बरसां तांई रा राजस्थानी रा सगळा कवियां री रचनावां इण जिल्द में कोनी। जिका कवि छूटग्या उणां पेटै किणी ढाळै रो अवमानना-भाव नीं समझ्यो जावै। हो सकै किणी सींव रै रैवतां कोई ऊरमावान रचनाकार अठै सामिल नीं होय सक्यो होवै।
                नवी कविता रा वै कवि जिकां रा निजू कविता-संग्रै छप्योड़ा है कै वै कवि जिका आपरी सखरी हाजरी पत्र-पत्रिकावां रै जरियै मांडता रैवै, वां नैं अठै सामिल करण री तजबीज करीजी है। युवा कवियां रै इण संकलन रा केई कवि जियां- संतोष मायामोहन, शिवराज भारतीय, राजेश कुमार व्यास, मदन गोपाल लढ़ा, ओम नागर, विनोद स्वामी, हरीश बी. शर्मा, शिवदान सिंह जोलावास आद साहित्य पेटै लांबै बगत सूं जुड़ाव राखणिया संजीदा अर ओळखीजता कवि है। इण संकलन रा केई दूजा युवा कवि ई ओळख बणावण में लाग्योड़ा दीसै अर कैवणो पड़ैला कै इण ‘मंडाण’ मांय आं कवियां री पळपळाट करती ऊरमा परखी जाय सकै।
                हरेक कवि अर कविता रो आप-आप रो न्यारो-न्यारो ढंग-ढाळो होया करै। आं सगळा कवियां नैं एक जाजम माथै जचावतां किणी ढाळै रो कोई फरक संपादन रै ओळावै कोनी कर्यो है। कवितावां री बानगी खातर सगळा कवियां वास्तै च्यार पानां री सींव राखतां थकां, विगत ऊमर रै हिसाब सूं अर परिचै अकारादि क्रम में राखीज्यो है। अठै ओ दावो कोनी कै ओ प्रतिनिधि युवा कवियां कै प्रतिनिधि कवितावां रो संकलन है। हां, इत्तो जरूर कैयो जाय सकै कै इण संकलन मांय केई प्रतिनिधि युवा कवि अर प्रतिनिधि कवितावां आप नैं अवस मिलैला।
                कविता परंपरा रो विगसाव है आज री आधुनिक कविता। जूनै काव्य-रूपां अर मंच नैं बिसारती आ लांठी जातरा बगत-बगत री युवा कविता सूं राती-माती होयी। इयां कैयो जाय सकै कै कविता जातरा नैं युवा कवि नवा रंग सूंपै। बरस इक्कोत्तर में ‘राजस्थानी-एक’ रै मारफत कवि तेजसिंह जोधा आधुनिक कविता नै बंधी-बंधाई सींव अर बुणगट सूं न्यारी कर’र साम्हीं लाया। नवी कविता रै इण रूप-रंग अर बानगी रो हाको घणो करीज्यो। इण धमाकै पछै युवा बरस रै टाणै एक बीजो सुर घणै नेठाव साथै 1985 में तिमाही पत्रिका ‘राजस्थली’ ई साम्हीं राख्यो। ‘राजस्थली’ रै च्यार अर ‘राजस्थानी-एक’ रै पांच कवियां री कविता-जातरा री सावळ अंवेर नीं होयी। आं मांय सूं केई कवि कविता सूं लांबो जुड़ाव नीं राख सक्या। अठै कवि जोधा रै सबदां मांय बस इत्तो ई कैयो जाय सकै कै ‘अठै केई-केई हांफळा है’। कवि ओम पुरोहित ‘कागद’ पोथी रूप अणछपिया कवियां नैं साम्हीं लावणै रो जतन ‘थार सप्तक’ रै मारफत कर रैया है।
                किणी दौर रै ऊरमावान युवा कवियां रै थापित होवण कै नीं होवण रै कारणां माथै विचार होवणो चाहीजै। थापित होवणो का नीं होवणो बगत रै हाथां, पण कविता जातरा नैं अणथक चालू राखणी कवि रै हाथां होवै। अठै महताऊ बात आ है कै किणी पण विधा मांय बगतसर युवा रचनाकारां नैं ठौड़ मिलै। लगोलग वै इण मारग आगै बध कविता री नवी ओप दरसावैला।
                आप री भासा अर कविता नै अंगेजणो-अंवेरणो ई मोटी बात होया करै। केई भाई-बीरा तो राजस्थानी कविता री फगत गरीबी रो रोवणो रोवै अर विचारै कै आ गरीबी कूक्यां सूं कमती होय जासी। कविता रचण खातर कठैई विदेस जावण री दरकार कोनी। खुद कवि नैं आप रो आसो-पासो भाळणो है। घर, परिवार, समाज सूं सजी आ दुनिया ई कविता री जमीन होया करै। राजस्थानी कविता री जातरा मांय आज रा युवा कवि जे विचारैला कै आज कविता नैं कांई करणो है? कविता नैं जिको कीं करणो है उण में आडी कुण लगावै? आज कविता क्यूं लिखा? किण खातर लिखां? किसी बातां कविता में आवै कै आवणी चाहीजै? किसी बातां रै मांय-बारै कविता आवै? केई-केई सवाल है जिकां रा जबाब युवा कवियां नैं सोधणा पड़ैला।
                कवि अर कविता री कोई हद कोनी होवै। जठै-जठै सबदां रै मारफत पूगीज सकै, उण हरेक ठौड़ नंै कागद माथै कियां उतारां? कीं अैनाण-सैनाण मांड’र बताया जाय सकै। कवि अर सामाजिक कविता सुण-बांच’र उण हद-अणहद तांई पूग सकै। आ सींव जाणता थकां आं दोनुवां बाबत बात फगत सबदां री हद मांय करीजै।
                विग्यान दावै जितरी तरक्की कर लेवै पण कविता बणावण री कोई मसीन कोनी बणा सकै। कविता रो कोई फरमो का संचो ई नीं थरप्यो जाय सकै। कवि कविता रै रूप मांय आप रो रचाव राखै । रचाव खातर पीड़ जरूरी होवै। कांई बिना पीड़ रै रचाव कोनी होवै? कांई रचाव सूं पैली पीड़ ई होया करै? कांई रचाव किणी सुख रो नांव कोनी? रचाव पैली अर पछै रै सुख-दुख नैं रचाव करणियां ई जाण सकै। आपां सुख-दुख झेलता, मिनखा-जूण मांय जूझता, रचाव रा रंग निरखता-परखता आगै बधता आया हां। हरेक नवै बगत में कविता रै आंगणै पगलिया मांडती युवा पीढी न्यारै-न्यारै सुरां नैं सोधती-साधती बगत परवाण सेवट किणी खास राग नैं हासल करै। कविता रै मारग निकळ्या ‘मंडाण’ रा अै कवि अठै री आखी जूण नैं अरथावै-बिड़दावै। आपरै आसै-पासै री दुनिया री हलगल बाबत आपरी बात कविता रै मारफत राखै।
                आज नवी कविता छंद नैं राम-राम कर दिया लखावै अर रस-अलंकार री अटकळां ई अकारथ होयगी। आज री युवा कविता रो समूळो दीठाव जूनी आलोचना-दीठ रै ताबै आवै जैड़ी बात कोनी। वयण सगाई, छंद, ओपमा रा रसिया नैं नवा सबदां अर भावां री आ बुणगट सावळ संभाळणी पड़ैला। आं मांयली रचाव री पीड़ नैं परखणी पड़ैला। नवा कवि किणी जूनी रीत कै परंपरा माथै कलम सांभै तद वां रा सवाल आज सूं जुड्योड़ा होवै। नवी कवितावां में इण नैं आज मोटी खासियत रूप इण ‘मंडाण’ मांय ओळख सकां।
                कविता हंसी-खेल कोनी अर कविता रचाव-विधि आगूंच कवि नंै ठाह कोनी होया करै। किणी कविता री कोई विधि जाण’र दूजी कविता कोनी लिखीजै। कविता में कोई सीधी सपाट इकसार बुणगट कोनी। दावै जियां ओळ्यां लिखण सूं कोई कविता कोनी बणै। नवी कविता जे पग लिया है तो उण री कोई विधि है। लिखण अर रचण मांयलो आंतरो तो आपां जाणां। कांई साचाणी कविता रचणो सौरो काम है! जद हरेक ओळी आंकी-बांकी अर कीं न्यारो आंतरो लियां किणी बीजी ओळी-घर में बैठी है, तद उण री आपरी आंक-बांक रो कोई तो अरथ है। उण अरथ नैं ओळख’र अरथावणो है। आं रो किणी ओळी रै भेळप में राखणो का अलायदो लिखणो समझ री बात है।
                अबार तांई होयै राजस्थानी कविता रै काम नैं देख्यां जाण सकां कै आधुनिक कविता-जातरा री बात करणियां अजेस आ बात करी ई कोनी। संकलन रा केई कवियां री कवितावां देख्यां ठाह लाग सकै कै आज री युवा कविता रो रंग-रूप, भासा-बिम्ब अर मिजाज आद स्सो कीं बदळग्यो है। असल मांय इण इक्कीसवैं सईकै री आं कवितावां माथै खुल’र बात करण री दरकार लखावै। कैवण नैं तो कैयो जावै कै आज आखै देस नैं युवा पीढी माथै गाढो पतियारो है। सो कैयो जाय सकै कै इणी आस अर भरोसै सागै आवतै बगत में भारतीय कविता पेटै युवा कवि राजस्थानी कविता री साख ऊजळी करैला।
                जूनी अर नवी कवितावां मांय बदळाव रा कारण सोधतां आपां नैं आज आखती-पाखती रा हालात देखणा अर विचारणा पड़ैला। आज जद आखी दुनिया एक गांव बण रैयी है। दूजै पासी गांव-गांव बिचाळै आंतरो अर अलगाव पसर रैयो है। गांवां अर देस रै इण बदळाव बिचाळै मिनख-मिनख बिच्चै जुध मंडग्यो है। घर, परिवार, समाज अर देस साम्हीं वो भीड़ थकां एकलो होयग्यो है।
                जुध जे रणखेत मांय होवै तो एक दिन निवड़ जावै। नित रै इण जुद्ध सूं कियां पार पावां। आंगणै-आंगणै अर अंतस-अंतस जुध रा बीज पांगर रैया है। अंतस मांयलो अंधारो जीवण-रस नैं खाटो कर रैयो है। इण अबखै बगत मांय स्सो कीं बदळीज’र नवै रंग रूप मांय आपां रै साम्हीं है। इण नैं ओळखती दीठ नवी है। इण खातर नवी दीठ रै आं युवा कवियां री रचनात्मकता लारली पीढी सूं न्यारी होवणी वाजबी है। पण नवै अर जूनै री आ सीर समझणी पड़ैला। कवयित्री किरण राजपुरोहित ‘नितिला’ री कविता ‘ओळूं रो सूरज‘ बानगी रूप देखां-
                                सगळी बातां
                                जद बीतगी
                                बणागी सूरज ओळूं रो
                                जिण मांय-
                                पिघळ-पिघळ
                                भरीजै फेरूं
                                झील म्हारी
                                ओळूं री।
                कविता अर जीवण दोनूं अड़ो-अड़ चालै, एक नैं समझण खातर दूजै री जरूरत है। अबै वा भारी भरकम सबदावळी, छंद रा बीड़ा अर अलंकारां री छटावां जचावण-उठावण री दरकार कोनी। खुद रो कोई एक कै केई छोटा-छोटा साच घर-परिवार रा कविता में कवि राख सकै। एक दाखलै रूप इण बात नैं कवि मदन गोपाल लढ़ा री कविता ‘म्हारै पांती री चिंतावां’ सूं जाण सकां।
                                म्हनैं दिनूगै उठतां पाण
                                माचै री दावण खींचणी है।
                                पैलड़ी तारीख आडा हाल सतरह दिन बाकी है
                                पण बबलू री फीस तो भरणी ई पड़ैला।
                                जोड़ायत सागै एक मोखाण ई साजणो हुसी
                                अर कालै डिपू माथै केरोसीन भळै मिलैला।
                                म्हैं आ ई सुणी है कै
                                ताजमहल रो रंग पीळो पड़ रैयो है आं दिनां।
                                सिराणै राखी पोथी री म्हैं
                                अजै आधी कवितावां ई बांची है।
                कवियां री आं कवितावां मांय बगत री झांई देखी जाय सकै। ‘इण दिस पड़ी नीं सुख री झांई, राज बदळग्यो म्हानै कांई...’ उस्ताद री कविता आपरै बगत री कविता ही। अबै उण बगत, देस अर समाज री वै बातां अर चिंतावां बदळगी। जूना राज-काज अर रिवाजां रै बदळियां स्सो कीं बदळ जाया करै। आज रै समाज में लुगाई री छिब अर हेत-प्रीत रो उणियारो बदळ्यो है। संसार में लुगायां है, टाबर है, घर-परिवार अर प्रेम है। आ रूपाळी दुनिया इणी प्रेम सूं है। इण प्रेम नैं बदरंग करण वाळी केई बातां होवै। प्रेम बाबत युवा कवि लिखै अर बीजा करतां बेसी लिखै। कवि ओम नागर आपरी कविता में कैवैै-
                                प्रेम-
                                आंख की कोर पे
                                धरियो एक सुपनो
                                ज्ये रोज आंसू की गंगा में
                                करै छै अस्नान
                                अर निखर जावै छै
                                दूणो।
                कैयो जाय सकै कै इण जुग-समाज री सगळी बातां किणी एक कवि में कोनी लाधै। आं सगळा कवियां नंै एकठ करियां आज री पूरी कथा समझ सकां। कविता-मारग माथै चालणिया कवि किणी बंध्यै-बंधायै मारग कोनी चालै। युवा कवियां जाण लियो है कै खुद रो मारग खुद बणावणो पड़ैला। आपरै आसै-पासै रा निजू दीठाव ई कविता रै रूप ढाळता कवि आपरी सरलता-सहजता रै पाण असरदार बणै। कवि विनोद स्वामी री कविता ‘सुपना’ मांय नवै बगत रा नवा सुपनां अर दीठ री एक बानगी दाखलै रूप देख सकां-
                                माटी रा मोल लियोड़ा दो मोरिया,
                                दायजै में आयोड़ी दीवार-घड़ी,
                                जेठ री दुपारी में
                                हाथां काढ्योड़ी चादर अर सिराणा,
                                गूगै री चिलकणी कोर आळी फोटू
                                बरसां सूं संदूक में पड़ी देखै
                                एक
                                कमरै नैं सजावण रा सुपना।
                केई अंवळाया अर अबखायां इण जुग री मान सकां। हरेक भासा नैं अगाड़ी-पिछाड़ी हरेक जुग मांय जूझ ई जूझ मिलै। बगत-बगत माथै इण जूझ सूं जूझता कवियां अर लेखकां आपरी सखरी हाजरी मांडी। साहित्य री केंद्रीय विधा कविता नंै पैली आपां रा कवि कंठै संभाळ’र राखी अर आज तो जाणै आखो आभो-जमीन आपां नैं नूंतै। आपां रा नवा काम साख सवाई करैला। नवी तकनीक अर विकास रै आयां आज कोई सबद कै अरथ एक खुणै सूं बीजै खुणै तांई देस-दुनिया तांई तुरत जातरा कर सकै। मोबाइल, ई-मेल अर इंटरनेट रै कारण आपस री बंतळ मांय तेजी आई है। हरख री बात है कै घणा-साक नवा कवि इण नवी दुनिया सूं साबको राखै।
                परंपरा-विगसाव रै इण दौर मांय नवा संस्कारां अर जीवण-मूल्यां मांय बदळाव ई आपां देख सकां। बदळतै जुग मांय कविता रा रंग अर तेवर आज री भारतीय कविता रै आंगणै कोड सूं सागो करै तो इण रो जस कवियां नैं। हरेक भासा रो कवि आप रै आखती-पाखती री बात करै। आप री जमीन अर आभै रो जस-अपजस कविता मांय गावै तद ई कैय सकां कै वो इण जूण रा सगळा राग-रंग संभाळै। कवि हरीश बी. शर्मा री ओळ्यां है-
                                थारै खुद रा सबदां नैं
                                परोटतां
                                थारै दिखायोड़ै
                                दरसावां माथै
                                नाड़ हिलावतां ई जे
                                म्हारा जलमदिन निकळना हा
                                फेरूं क्यूं दीन्ही
                                म्हनैं रचण री ऊरमा?
                ओ सवाल करण रो भाव युवा कविता री खासियत रूप आं कवितावां में निजर आवै। कविता रै इण सवाल भेळै आलोचना री बात करणी पड़ैला। आलोचना री आपरी जिम्मेदारी अर जबाबदेही होया करै पण राजस्थानी मांय आलोचना, पत्र-पत्रिकावां, मंच, प्रकासन आद सुभीतै सूं कोनी! आं अबखायां रै चालतां रचनाकारां री रचनावां बगतसर साम्हीं नीं आवै। किणी संग्रै-संकलन मांय कवितावां आयां सूं कवि री ओळख नैं अरथावण मांय सुभीतो होवै। आ बात तो सगळा सूं लांठी मानीजैला कै आज जद राजस्थानी मांय पत्र-पत्रिकावां साव कमती है अर पोथी प्रकासण पेटै ई आपां रा सगळा प्रकाशकां रो हाथ एकदम काठो है, तो ई रचनाकार सिरजण-धरम पोख रैया है!
                राजस्थानी साहित्य खातर बीसवीं सदी जावतां-जावतां एक मोटो आडो महिला लेखिकावां खातर खोल्यो। कवयित्री संतोष मायामोहन रै कविता-संग्रै ‘सिमरण’ (1999) माथै केंद्रीय साहित्य अकादेमी पुरस्कार-2003 मिलणो चरचा मांय रैयो। भारतीय भासावां री अंवेर करतां साहित्य अकादेमी रै इतिहास मांय आ पैली घटना ही कै तीस बरसां सूं ई कमती ऊमर री कवयित्री नैं ओ सम्मान मिल्यो। इण सूं पैली साहित्य अकादेमी पुरस्कार पेटै डोगरी भासा री लेखिका पद्मा सचदेव रो नांव कमती उमर री कवयित्री पेटै गिणीजतो हो। आ बात भळै अठै गीरबै सूं बखाण सकां कै साहित्य अकादेमी, दिल्ली कानी सूं राजस्थानी साहित्य पेटै युवा कवयित्री संतोष सूं पैली कदैई किणी लेखिका नैं कोई पुरस्कार कोनी मिल्यो।
                अठै संकलित कवयित्रियां री कवितावां मांय समूची लुगाईजात री मुगती रो सपनो अर विकास री पोल-पट्टी बाबत कीं बातां घणै असरदार ढंग सूं कविता रै मारफत साम्हीं आवै। आं री कवितावां में एकै कानी तो प्रकृति रो रूप आपां साम्हीं आवै, दूजै कानी कविता आदमी अर लुगाईजात रै अंतरंग संबंधां नंै बखाणै। कविता-काया मांय उण अदीठ-निराकार नंै ई रचै। प्रीत जठै आदमी-लुगाई रै मांय आपरो वासो करै। इण प्रीत नैं रूप देवण मांय आ देही मददगार बणै। प्रीत-राग रा रंग देह मांय खिलै अर आ हियै री उपज अर उण गूंग नैं खोलण सारू युवा कवयित्रियां कमती सबदां नंै काम मांय लेय’र घणी बातां कैय देवै। अठै दाखलै सारू कवयित्री मोनिका गौड़ री कविता ‘ओळख’ देखां-
                                थूं है
                                कुण?
                                आरसी ज्यूं
                                साम्हीं ऊभो
                                म्हनैं इज
                                बतळावै
                                म्हारा ई सैनाण
                                अर ओळखाण
                                गम्योड़ो म्हारो ‘म्हैं’
                                थूं कठै सूं
                                ढूंढ लायो है बावळा....।
                मीरां नैं तो आखो जगत मान दियो। मीरां री ओळ मांय मध्यकालीन साहित्य मांय केई-केई महिला रचनाकारां री पद्य-रचनावां आपां री परंपरा मांय मिलै। आधुनिक साहित्य पेटै राणी लक्ष्मीकुमारी चूंडावत रो कारज किणी सूं छानो कोनी। आज तांई जिका संपादित कविता-संकलन प्रकाशित होया है वां मांय फगत अर फगत कवि ई संकलित होवता रैया है। इक्की-दुक्की ठौड़ फगत एक संतोष मायामोहन री कवितावां संकलित मिलै। इण संकलन मांय किरण राजपुरोहित ‘नितिला’, मोनिका गौड़, गीता सामौर, रचना शेखावत, सिया चौधरी, अंकिता पुरोहित, रीना मेनारिया अर कृष्णा सिन्हा री कवितावां मिलैला। आ ऊजळी ओळ बगत परवाण न्यारी ओळखीजैला।
                इण संकलन मांय सामिल केई कवियां रा कविता-संग्रै आगूंच छप्योड़ा है, अर भळै ई छपैला। जिकां कवियां रा संकलन साम्हीं आयां वां पछै री कविता-जातरा मांय आपां फरक इण रूप में देख सकां कै आं कवियां री पैली री अर आज री कवितावां मांय संवेदना नैं साधण री भासा-बुणगट अर सावचेती रो विगसाव होयो है। पैली आळी भावुकता अर विस्तार री जागा अबै कविता री समझ, कमती सबदां में रचण लकब आं री कमाई कैयी जावैला। लगोलग कविता माथै काम करण सूं युवा कवि आज कविता रै जिण आंटै नैं परखण-पिछाणण लाग्या है, वो आंटो घणी साधना सूं पकड़ मांय आवै।
                संकलन रै कवियां खातर किणी एकल बंधेज री घणी बात नीं कथीज सकै। नवी कविता री पैली सरत है कै वा किणी एकल बखड़ी में कोनी आवै। आं कवितावां रो ढाळो आज री भारतीय भासावां री नवी कविता रै जोड़ रो मिलैला, तो कठैई आप नैं आं कवितावां मांय ठेठ अठै री माटी री न्यारी-निरवाळी सौरम आवैला। मिनखाजूण अर अठै रै लोक रा गीत गावती आं कवितावां मांय न्यारा-न्यारा रंग लाधैला। आज बो टैम कोनी जद दीठाव बेजां साफ होया करता हा। अबै तो अबखाई आ है कै दीठाव मांय केई-केई भेद होवै अर भेद मांयलै भेद रा ई केई आंटा कविता नैं साफ करणा होवै।
                अठै आ बात ई लिखणी जरूरी लखावै कै कोई कवि जद नवो-नवो कविता रै मारग निकळै तद उणनैं आपरी लिखी सगळी ओळियां मांय कविता लखावै। होळै-होळै इण मारग रै हेवा होयां वो समझ पकड़ लेवै। समझ आवै कै कोई ओळी कद कविता री ओळी होवै अर कठै कांई सुधार री गुंजाइस है। अठै म्हारी निजरां साम्हीं एक दीठाव मंडाण रै रूप मांय है।
                आखै राजस्थान मांय लिखण-बांचण अर साहित्य-सिरजकां री पूरी एक नवी पीढी ऊभी होयगी है। जरूरत है इण नैं देखण-परखण अर आगै अंवेरण री। ख्यातनाम कवि-संपादक अर अकादमी अध्यक्ष श्याम महर्षि री साधना रो ओ प्रताप कै आखै मुलक मांय साहित्य-गढ़ रूप श्रीडूंगरगढ़ ओळखीजै। साहित्य री हरेक विधावां मांय रचण-खपण वाळा केई-केई रचनाकारां नैं वै ऊभा करिया। युवा कवियां री कवितावां रै इण मंडाण नै जे वै आगूंच नीं ओळखता तो इण ढाळै रो काम नीं होय सकतो हो। ओ निरवाळो संकलन साम्हीं लावण खातर महर्षिजी रो घणो-घणो आभार मानूं जिकां इण युवा-संकलन री जाझी जरूरत समझी अर म्हनैं संपादन कारज सूंप्यो।
                सेवट मांय कैवणो चावूं कै अै युवा रचनाकार केई-केई ओळ्यां में नवी दीठ सूं आप री बात साम्हीं राखै। अै कवितावां सरलता, सहजता अर भासा री चतर बुगटण नै नवी दीठ रै पाण आप री न्यारी ओळख थापित करै। अै ऊरमावान रचनाकार जिका आप री भासा अर कविता नैं माथै ऊंचणियां है, आं रो जुड़ाव अर साधना आस उपजावै। कामना करूं कै आं रो जोस, उमाव अर ऊरमा ई कविता नैं आगै बधावैला। इण आस री जस-बेल सदीव हरी रैवै।
 
नीरज दइया
बीकानेर, 10 अक्टूबर, 2012