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"गुड़िया-3 / नीरज दइया" के अवतरणों में अंतर

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|संग्रह=उचटी हुई नींद / नीरज दइया
 
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{{KKCatKavita‎}}<poem>जिस गुड़िया से था
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{{KKCatKavita‎}}<poem>तुम आई हो
प्यार बचपन में
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किसी अन्य लोक से
वह कितना निष्पाप था
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बन कर सुंदर-सी गुडिय़ा
  
उसे दिन-रात चूमना
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जब भी देखता हूं-
और बार-बार गले लगाना
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पाता हूं तुम्हें
कितना बेदाग था
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मासूम-सी!
  
अब पाप में
+
अब बचपन जा चुका
दाग गिन भी नहीं पाता !
+
कहां छुपा सकता हूं तुम्हें -
 +
सिवाय मन के!
 
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06:22, 16 मई 2013 के समय का अवतरण

तुम आई हो
किसी अन्य लोक से
बन कर सुंदर-सी गुडिय़ा

जब भी देखता हूं-
पाता हूं तुम्हें
मासूम-सी!

अब बचपन जा चुका
कहां छुपा सकता हूं तुम्हें -
सिवाय मन के!