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"अफ़साने / गुलज़ार" के अवतरणों में अंतर
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16:16, 7 दिसम्बर 2007 का अवतरण
खुशबू जैसे लोग मिले अफ़साने में
एक पुराना खत खोला अनज़ाने में
जाना किसका जिक्र है इस अफ़साने में
दर्द मज़े लेता है जो दुहराने में
शाम के साये बालिस्तों से नापे हैं
चाँद ने कितनी देर लगा दी आने में
रात गुज़रते शायद थोड़ा वक्त लगे
ज़रा सी धूप दे उन्हे मेरे पैमाने में
दिल पर दस्तक देने ये कौन आया है
किसकी आहट सुनता है वीराने मे ।