"इक़बाल-ए-जुर्म / फ़ाज़िल जमीली" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 40: | पंक्ति 40: | ||
ऐ मेरी हमसफ़र बग़ावत कर | ऐ मेरी हमसफ़र बग़ावत कर | ||
अपनी तारीख़ ख़ुद मुरत्तब कर | अपनी तारीख़ ख़ुद मुरत्तब कर | ||
− | |||
शब्दार्थ | शब्दार्थ | ||
पंक्ति 48: | पंक्ति 47: | ||
नदामत = पछतावा, पश्चाताप | नदामत = पछतावा, पश्चाताप | ||
मुरत्तब करना = क्रमबद्ध करना, संग्रहित करना | मुरत्तब करना = क्रमबद्ध करना, संग्रहित करना | ||
+ | </poem> |
23:19, 29 जून 2013 के समय का अवतरण
ख़वातीन के आलमी दिन पर
वक़्त सबसे बड़ी अदालत है
और मैं वक़्त की अदालत में
आज इक़बाल-ए-जुर्म करता हूँ
ज़िन्दगी की तवील राहों में
हम शरीक-ए-सफ़र रहे दोनों
तू मुझे ज़िन्दगी समझती रही
मैं तुझे क़त्ल करता आया हूँ
मैंने आदम से लेकर आज तलक
जिस कदर भी लहू बहाया है
सारा तेरे बदन से आया है
तू जो पैदा हुई तो मैने तुझे
ज़िन्दा डर गोर करके मार दिया
कभी दीवार में चुना तुझको
कभी सूली पे तुझको वार दिया
हमने मिलकर मकान बनवाया
जिसमें दोनों मुक़ीम हैं लेकिन
तू घरेलू ग़ुलाम की सूरत
और मैं मालिक-ए-मकान की तरह
सिर्फ़ अपनी हवस मिटाने को
मैंने तेरी क़सीदा ख़्वानी की
सोचता हूँ तो याद आता है
मैंने क्या-क्या ग़लत-बयानी की
मेरा माज़ी है झूठ की तारीख़
हाल अपने पे बस नदामत है
इससे पहले कि इस नदामत में
मैं किसी रोज़ ख़ुदकुशी कर लूँ
ऐ मेरी हमसफ़र बग़ावत कर
अपनी तारीख़ ख़ुद मुरत्तब कर
शब्दार्थ
तवील = लम्बी
गोर करके = क़ब्र ख़ोदकर
क़सीदा ख़्वानी = ख़ुशामद
नदामत = पछतावा, पश्चाताप
मुरत्तब करना = क्रमबद्ध करना, संग्रहित करना