|
|
पंक्ति 1: |
पंक्ति 1: |
− | {{KKGlobal}}
| |
| {{KKRachna | | {{KKRachna |
| |रचनाकार=कैलाश वाजपेयी | | |रचनाकार=कैलाश वाजपेयी |
| }} | | }} |
| | | |
− | कोलाहल इतना मलिन<br>
| + | {{KKPustak |
− | दुःख कुछ इतना संगीन हो चुका है<br>
| + | |चित्र=Bhavishay_ghat_raha_hai.jpg |
− | मन होता है<br>
| + | |नाम=सो तो है |
− | सारा विषपान कर<br>
| + | |रचनाकार=[[कैलाश वाजपेयी]] |
− | चुप चला जाऊँ<br>
| + | |प्रकाशक=-- |
− | ध्रुव एकान्त में <br>
| + | |वर्ष= -- |
− | सही नहीं जाती<br>
| + | |भाषा=हिन्दी |
− | पृथ्वी-भर मासूम बच्चों <br>
| + | |विषय=कविताएँ |
− | माँओं की बेकल चीख़।<br>
| + | |शैली=-- |
− | सारे के सारे रास्ते<br><br>
| + | |पृष्ठ=-- |
− | | + | |ISBN=-- |
− | सिर्फ़ दूरियों का मानचित्र थे<br>
| + | |विविध=-- |
− | रहा भूगोल<br>
| + | }} |
− | उसका अपना ही पुश्तैनी फ़रेब है<br>
| + | |
− | कल तक्षशिला आज पेशावर <br>
| + | |
− | इसके बाद भेद-ही-भेद<br>
| + | |
− | जड़ का शाखाओं से <br>
| + | |
− | दाहिनी भुजा का बायीं<br>
| + | |
− | कलाई से।<br><br>
| + | |
− | | + | |
− | बीसवीं सदी के विशद<br>
| + | |
− | पटाक्षेप पर<br>
| + | |
− | देख रहा हूँ मैं गिर रही दीवार<br>
| + | |
− | पानी की <br>
| + | |
− | डूब रहे बड़े-बड़े नाम<br>
| + | |
− | कपिल के सांख्य का आख़िरी भोजपत्र <br>
| + | |
− | फँसा फड़फड़ा रहा-<br><br>
| + | |
− | | + | |
− | अन्त हो रहा या शायद<br>
| + | |
− | पुनर्जन्म <br>
| + | |
− | पस्त पड़ी क्रान्ति का।<br><br>
| + | |
− | | + | |
− | बीसवीं सदी के विशद मंच पर<br>
| + | |
− | खड़े जुनून भरे लोग-<br>
| + | |
− | जिन नगरों में जन्मे थे<br>
| + | |
− | उन्हीं को जला रहे<br>
| + | |
− | एक ओर एक लाख मील चल <br>
| + | |
− | गिरता हुआ अनलपिण्ड <br>
| + | |
− | और <br>
| + | |
− | दूसरी तरफ़ बुलबुला<br>
| + | |
− | बुलबुला<br>
| + | |
− | इनकार करता है पानी <br>
| + | |
− | कहलाने से <br>
| + | |
− | बडा समझदार हो गया है बुलबुला।<br><br>
| + | |
− | | + | |
− | असल में अनिबद्ध था विकल्प<br>
| + | |
− | विकल्प ही भविष्य था <br>
| + | |
− | भविष्य पर घट रहा है।<br>
| + | |
− | इस क्षणभंगुर संसार में <br>
| + | |
− | अमरौती की तलाश भी<br>
| + | |
− | जा छिपी राष्ट्रसंघ के<br>
| + | |
− | पुस्तकालय में <br>
| + | |
− | देश जहाँ प्रेम की पुण्यतिथि मना रहे <br><br>
| + | |
− | | + | |
− | ज़िक्र जब आता वंशावलि का<br>
| + | |
− | हरिशचन्द्र की <br>
| + | |
− | पारित हो लेता स्थगन प्रस्ताव<br>
| + | |
− | शायद सभी को<br>
| + | |
− | अपना भुइँतला ज्ञात है।<br>
| + | |
− | बहारों की नगरी में नाद बेहद का<br>
| + | |
− | आकाश फट रहा<br>
| + | |
− | एक आँखों वाले संयन्त्र पर <br><br>
| + | |
− | | + | |
− | देख रहे बच्चे<br>
| + | |
− | अपनी जन्मस्थली<br>
| + | |
− | बेपरदा हुई मनुष्यता<br>
| + | |
− | भोग के प्रमाणपत्र बाँट रही <br>
| + | |
− | खुल रही पहेली दिन-ब-दिन<br>
| + | |
− | रहस्य <br>
| + | |
− | झिझक रहा फुटपाथ पर पड़ा <br>
| + | |
− | अपने पहचान-पत्र का अभाव में <br>
| + | |
− | दरिद्रदेवता<br>
| + | |
− | पूछ रहा पता<br>
| + | |
− | हवालात का <br><br>
| + | |
− | | + | |
− | जहाँ उसने अपनी शिनाख़्त की <br>
| + | |
− | अनुपस्थिति के सबूत के अभाव में <br>
| + | |
− | फाँसी लगेगी...लगनी है<br>
| + | |
− | असल में यह अनुपस्थिति का मेला है<br>
| + | |
− | खत्म हुई चीज़ों की ख़रीद का विज्ञापन <br>
| + | |
− | युवा युवतियों को बुला रहा<br>
| + | |
− | कि गर्भ की गर्दिश से बचने के <br>
| + | |
− | कितने नये ढंग अपना चुकी है<br>
| + | |
− | मरती शताब्दी <br><br>
| + | |
− | | + | |
− | शोर-शोर सब तरफ़ घनघोर<br>
| + | |
− | नेता सब व्यस्त कुरते की लम्बाई बढ़ाने में <br>
| + | |
− | स्त्रियाँ<br>
| + | |
− | उभराने में वक्ष<br>
| + | |
− | किसी को फ़िक्र नहीं सौ करोड़ वाले <br>
| + | |
− | इस देश में <br>
| + | |
− | कितने करोड़ हैं जो अनाथ हैं<br>
| + | |
− | कुत्तों की फूलों में कोई रूचि नहीं <br>
| + | |
− | न मछलियों का छुटकारा<br>
| + | |
− | अपनी दुर्गन्ध से <br>
| + | |
− | यों सारी उम्र रहीं पानी में।<br><br>
| + | |
− | | + | |
− | कैसे मैं पी लूँ सारा विष<br>
| + | |
− | विलय से पहले<br>
| + | |
− | मुझ नगण्य के लिए यह <br>
| + | |
− | पेंचीदा सवाल है।<br>
| + | |
− | सब फेंके दे रही सभ्यता<br>
| + | |
− | धरती की कोख <br>
| + | |
− | दिन-ब-दिन ख़ाली<br>
| + | |
− | पानी हवा आकाश<br>
| + | |
− | हरियाली धूप<br>
| + | |
− | धीरे-धीरे<br>
| + | |
− | बढ़ती चली जा रही <br>
| + | |
− | कंगाली सब्र की <br>
| + | |
− | समझ कै़द <br>
| + | |
− | बड़बोले की कारा में <br><br>
| + | |
− | | + | |
− | त्वरा के चक्कर में <br>
| + | |
− | सब इन्तजार हो गया है<br>
| + | |
− | काल को पछाड़कर <br>
| + | |
− | तेज़ रफ्तार से <br>
| + | |
− | सब-कुछ होते हुए<br>
| + | |
− | होना <br>
| + | |
− | बदल गया है<br>
| + | |
− | समृद्धि के अकाल में<br>
| + | |
− | अस्ति से परास्त <br>
| + | |
− | विभवग्रस्त आदमी<br>
| + | |
− | एक-एक कर <br>
| + | |
− | फेंककर <br>
| + | |
− | सारी सम्पदा<br>
| + | |
− | क्या पृथ्वी भी <br>
| + | |
− | फेंक देगा ?<br><br>
| + | |
− | | + | |
− | मेरे समक्ष यह<br>
| + | |
− | संजीदा सवाल है<br>
| + | |
− | ठीक है कि सूर्य बुझनहार धूनी है <br>
| + | |
− | किसी अवधूत की<br>
| + | |
− | अविद्या-विद्यमान को ही़<br>
| + | |
− | शाश्वत मानना <br>
| + | |
− | ठीक है कि हस्ती<br>
| + | |
− | एक झूठा हंगामा है <br>
| + | |
− | हर प्रतीक्षा का<br>
| + | |
− | गुणनफल <br>
| + | |
− | सिराना चुक <br>
| + | |
− | जाना है।<br>
| + | |
− | तभी भी निष्ठा उकसाती मुझे <br><br>
| + | |
| | | |
− | सब कुछ को रोक देना <br>
| + | * [[भविष्य घट रहा है. / कैलाश वाजपेयी]] |
− | जरूरी है<br>
| + | |
− | भूलकर अपनी अवस्था।<br>
| + | |
− | चिड़ियों से फूलों से <br>
| + | |
− | पेड़ से हवा से<br>
| + | |
− | कहना चाहिए<br>
| + | |
− | भीतर से बाहर का तालमेल <br>
| + | |
− | नाव नदी संयोग<br>
| + | |
− | के बावजूद<br>
| + | |
− | बना अगर रहा न्यूनतम भी<br>
| + | |
− | बिसरा सरगम<br>
| + | |
− | किसी ताल में <br>
| + | |
− | होकर निबद्ध फिर<br>
| + | |
− | आएगा।<br>
| + | |
− | पृथ्वी बच जाएगी<br>
| + | |
− | मैं रहूँ नहीं रहूँ<br>
| + | |
− | फ़र्क क्या।
| + | |