भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कोनी चालै जोर / मदन गोपाल लढ़ा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=म्हारै पांती री चिंतावां / मदन गोपाल लढ़ा | |संग्रह=म्हारै पांती री चिंतावां / मदन गोपाल लढ़ा | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatRajasthaniRachna}} | |
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<Poem> | <Poem> |
22:59, 16 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण
मोकळी मांडो विगत
अणचावा सपनां री
कोनी चालै जोर
सपनां माथै
आवै ज्यूं ई आवै।
आप दांई
दुनियां रो हरेक मिनख
टाळणो चावै
डरावना सपनां
अर देखणो चावै
फगत अर फगत
मनभावतां सपनां
पण मेह, मौत अर सपनां ईं
अळघा है
बजार री जद सूं
नींतर घर अर मन तांई
पूगग्या उणरा हाथ
भाड़ै मिल जावै
कूख तकात।
थमो, थोड़ा ढ़बो
बिरथा है जतन
कोनी चालै जोर सपनां माथै ।