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टाबर री आदत व्है- | टाबर री आदत व्है- |
09:57, 19 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण
अबखा अर अबोट सवालां में
अणजाण हाथ घालणो
टाबर री आदत व्है-
आगूंच वो कीं अंदाजै कोनी
अबखाई रो अंत
अर थाग लेवण ऊतरतो जवै
अंधारै बावड़ी पेड़ियां ।
टाबर रा वां अणची सवालां रो
वो ई पड़ूतर देवै
जिका आभाचूक हलक सूं बारै आय
ऊभ जावै सांम्ही अर
हालात सूं बाथेड़ो करण री हूजत करै
जीसा !
आपां नै क्यूं देखणो पड़ै
कोई रै मूंड़ै सांम्ही,
क्यूं ऊभणो पड़ै राजमारग रै ऐड़ै-छेड़ै
बोलां कोई री अणूंती जै जै-कार
अर क्यूं कदेई अबोलो बैठणो पड़ै
आपांनै इंछा परबारै ?
कैड़ी अणचींती दुविधा है
एकांनी टाबर री भोळी इंछावां
स्यांणी संकवां,
अलेखूं कंवळा सपना
अर बापरती काची नींद,
दूजै कांनी आ कुजबरी
परवसता री पीड़-
उणरी आंख्यां सांम्ही घूमै
टाबर री इंछावां
अर सवालां सूं जुड़ै उणरो मन,
सेवट धूजता पग
चाल पड़ै मत्तै ई उण गेलै
जिको एक अंतहीण जंगळ में
गम जावै-
कानां में फगत गूजती रैवै
टाबर री धूजती आवाज
थे यूं अणमणा कठीनै जावो जीसा !
दोफारां आपंनै सै’र जावणो है-
म्हनै आजादी री परेड़ में साथै रैवणो है,
थे यूं अबोला कठीनै जावो जीसा ?