भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"शब्द तुम कहो /कुमार सुरेश" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(' == शब्द तुम कहो लिपि की तोड् दो कारा प्राचीरों की सी...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
 +
==
 +
== शीर्षक ==
 +
==
  
 
== शब्द तुम कहो
 
== शब्द तुम कहो
 +
<poem>रचना यहाँ टाइप करें</poem>
  
 
लिपि की तोड् दो कारा  
 
लिपि की तोड् दो कारा  

15:00, 16 दिसम्बर 2013 के समय का अवतरण

==

शीर्षक

==

== शब्द तुम कहो

रचना यहाँ टाइप करें

लिपि की तोड् दो कारा प्राचीरों की सीमा मत मानो शब्द एसा कुछ कहो सब कुछ बदल जाये

प्रवेश करो प्रासादों में कहो शासकों से शासक भी होता है केवल आदमी ही और इतिहास के पन्नों पर नाम लिख जाने से खालिस आदमियत नहीं बदल सकती ा

जिन आंखों केा प्रतीक्षा है सुंदर दुनिया की उनको समझाओ वाणी वंचितों को शब्द देना ही वह तरीका है जिससे बन सकती है दुनिया बेहतर

जो धारण करते है तुम्हें उन सबको भी बतलाओ कि ब्रहमास्त्र का गलत आहवान अनंत पीडा देता है जैसी पीडा लेकर भटकता है अश्वतथामा आज भी चुपचाप

और उन मदारियों को जो तुम्हे नचा कर रोजी कमाना चाहते है चेताओ कि तुम संघर्ष के लिये हथियार हो आत्महत्या के लिये औजार नहीं ा








</poem> ==