भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जब समंदर में सूरज कहीं खो गया / रमेश 'कँवल'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश 'कँवल' |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhaz...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 13: पंक्ति 13:
 
ख़ुश्क खेतों में ख्वाबे-हसीं सो गया
 
ख़ुश्क खेतों में ख्वाबे-हसीं सो गया
  
आंख मलता हुआ वहमे-दिलकश2
+
आंख मलता हुआ वहमे-दिलकश2 उठा  
उठा बिस्तरे-शब3 पे जिस्मे-यक़ीं4 सो गया
+
बिस्तरे-शब3 पे जिस्मे-यक़ीं4 सो गया
  
 
जाने क्या बात थी रात ठहरी नहीं
 
जाने क्या बात थी रात ठहरी नहीं

16:56, 4 जनवरी 2014 के समय का अवतरण

जब समुन्दर में सूरज कहीं सो गया
पंछी वापस हुये हर मकीं सो गया

अब्र आलूदा1 मंज़र हवा ले उड़ी
ख़ुश्क खेतों में ख्वाबे-हसीं सो गया

आंख मलता हुआ वहमे-दिलकश2 उठा
बिस्तरे-शब3 पे जिस्मे-यक़ीं4 सो गया

जाने क्या बात थी रात ठहरी नहीं
सुबह जागी, सकूते-ज़मीं5 सो गया

अजनबीयत की दीवार रौशन रही
वह कहीं सो गया मैं कहीं सो गया

उसकी आंखों नेतार्इ दे-इक़रार6 की
थरथराते लबों पर 'नहीं’ सो गया.

ऐसी खुशबू उड़ी दो बदन से 'कंवल’
चांद महवे-ख़याले-हसीं7 सो गया


1. मेधाच्छादित 2. मनोहर आशंका 3. रात का विछौना
4. विश्वास की वधू 5. धरती की शांति 6. स्वीकृति का समर्थन
7. सुन्दर कल्पनाओं में तल्लीन होना।