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"धुआँ, आग का सही पता है / गुलाब सिंह" के अवतरणों में अंतर

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कितने बेगाने लगते हैं
 
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अपने ही साए
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अपने ही साए,
सपने हमें यहाँ तक लाए
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सपने हमें यहाँ तक लाए।
  
 
प्यारी रातें नींद सुहानी
 
प्यारी रातें नींद सुहानी
चढ़ता गया सिरों तक पानी
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चढ़ता गया सिरों तक पानी,
 
कागज वाले गुलदस्तों से
 
कागज वाले गुलदस्तों से
हमने की कल की अगवानी
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हमने की कल की अगवानी,
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दो हाथों की सौर पुरानी
 
दो हाथों की सौर पुरानी
पाँव ढँकें तो मुँह खुल जाए
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पाँव ढँकें तो मुँह खुल जाए।
  
 
सुख का महल अटारी कोठा
 
सुख का महल अटारी कोठा
कंधे डोर हाथ में लोटा
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कंधे डोर हाथ में लोटा,
 
रोने मुँह धोने की खातिर
 
रोने मुँह धोने की खातिर
आखिर और कौन धन होता
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आखिर और कौन धन होता?
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वैभव के इस राज भवन में
 
वैभव के इस राज भवन में
हम साभार गए पहुँचाए
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हम साभार गए पहुँचाए।
  
 
घर के भीतर डर जगता है
 
घर के भीतर डर जगता है
बाहर अँधियारा लगता है
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बाहर अँधियारा लगता है,
उमड़े उठे आँख भर आए
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उमड़े, उठे, आँख भर आए
धुआँ आग का सही पता है
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धुआँ, आग का सही पता है,
रोज रोज की गीली सुलगन
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फूँक लगे शायद जल जाए
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रोज-रोज की गीली सुलगन
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फूँक लगे शायद जल जाए।
 
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16:46, 6 जनवरी 2014 का अवतरण

कितने बेगाने लगते हैं
अपने ही साए,
सपने हमें यहाँ तक लाए।

प्यारी रातें नींद सुहानी
चढ़ता गया सिरों तक पानी,
कागज वाले गुलदस्तों से
हमने की कल की अगवानी,

दो हाथों की सौर पुरानी
पाँव ढँकें तो मुँह खुल जाए।

सुख का महल अटारी कोठा
कंधे डोर हाथ में लोटा,
रोने मुँह धोने की खातिर
आखिर और कौन धन होता?

वैभव के इस राज भवन में
हम साभार गए पहुँचाए।

घर के भीतर डर जगता है
बाहर अँधियारा लगता है,
उमड़े, उठे, आँख भर आए
धुआँ, आग का सही पता है,

रोज-रोज की गीली सुलगन
फूँक लगे शायद जल जाए।