भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ऋतु यात्राओं की / गुलाब सिंह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब सिंह |संग्रह=बाँस-वन और बाँ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
छो ("ऋतु यात्राओं की / गुलाब सिंह" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (बेमियादी) [move=sysop] (बेमियादी))) |
(कोई अंतर नहीं)
|
17:33, 7 जनवरी 2014 के समय का अवतरण
जलती यहाँ
वहाँ बुझ जाती
आग अलावों की
गोरी कभी साँवली दिखती
काया गाँवों की।
सन्नाटे को चीर गया है
शंख शिवाले का,
माँ की गोद दे गईं भाभी
दीप उजाले का,
किलकारी की किरण काटती
धुन्ध अभावों की।
आँसू भीगी शाम
दूध से भीगे हुए सबेरे
खाली घर-सी आँखों में
बस कल के रैन बसेरे
फटे हुए आँचल भर
गाँठें बँधी दुआओं की।
मिट्टी की दहलीज पुरानी
साँकल लगे किवाड़े,
बरगद-बाँस धूप-सूरज के
आ जाते हैं आड़े,
ठंडे नंगे पाँव, और यह-
ऋतु यात्राओं की।