भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अज्ञेय / परिचय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: '''सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय"''' (१९११-१९८७) का जन्म ७ मार्च १९...)
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
    
 
    
 
==शिक्षा==  
 
==शिक्षा==  
प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा पिता की देख रेख में घर पर ही [[संस्कृत]], [[फारसी]], [[अंग्रेजी]], और [[बांग्ला]] भाषा व साहित्य के अध्ययन के साथ। १९२५ में पंजाब से एंट्रेंस की परीक्षा पास की और उसके बाद [[मद्रास क्रिस्चन कॉलेज]] में दाखिल हुए। वहाँ  से विज्ञान में इंटर की पढ़ाई पूरी कर १९२७ में वे बी ए़स स़ी क़रने के लिए लाहौर के फॅरमन कॉलेज के छात्र बने।१९२९ में बी ए़स स़ी  करने के बाद एम ए़ म़ें उन्होंने अंग्रेजी विषय रखा;  पर क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लेने के कारण पढ़ाई पूरी न हो सकी।   
+
प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा पिता की देख रेख में घर पर ही संस्कृत, फारसी, अंग्रेजी, और बांग्ला भाषा व साहित्य के अध्ययन के साथ। १९२५ में पंजाब से एंट्रेंस की परीक्षा पास की और उसके बाद मद्रास क्रिस्चन कॉलेज में दाखिल हुए। वहाँ  से विज्ञान में इंटर की पढ़ाई पूरी कर १९२७ में वे बी ए़स स़ी क़रने के लिए लाहौर के फॅरमन कॉलेज के छात्र बने। १९२९ में बी ए़स स़ी  करने के बाद एम ए़ म़ें उन्होंने अंग्रेजी विषय रखा;  पर क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लेने के कारण पढ़ाई पूरी न हो सकी।   
 
==कार्यक्षेत्र==
 
==कार्यक्षेत्र==
१९३० से १९३६ तक विभिन्न जेलों में कटे। १९३६-३७ में  '''सैनिक'''  और  '''विशाल भारत''' नामक पत्रिकाओं का संपादन किया। १९४३ से १९४६ तक ब्रिटिश सेना में रहे; इसके बाद [[इलाहाबाद]] से  प्रतीक नामक पत्रिका निकाली और [[ऑल इंडिया रेडियो]] की नौकरी स्वीकार की। देश-विदेश की यात्राएं कीं। जिसमें उन्होंने [[कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय]] से लेकर [[जोधपुर विश्वविद्यालय]] तक में अध्यापन का काम किया। दिल्ली लौटे और [[दिनमान]] साप्ताहिक,  [[नवभारत टाइम्स]], अंग्रेजी पत्र  '''वाक् ''' और  '''एवरीमैंस''' जैसी प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया। १९८० में उन्होंने  '''वत्सलनिधि'''  नामक एक न्यास की स्थापना की  जिसका उद्देश्य साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में कार्य करना था। [[दिल्ली]] में ही ४ अप्रैल १९८७ को उनकी मृत्यु हुई।  
+
१९३० से १९३६ तक विभिन्न जेलों में कटे। १९३६-३७ में  '''सैनिक'''  और  '''विशाल भारत''' नामक पत्रिकाओं का संपादन किया। १९४३ से १९४६ तक ब्रिटिश सेना में रहे; इसके बाद इलाहाबाद से  प्रतीक नामक पत्रिका निकाली और ऑल इंडिया रेडियो की नौकरी स्वीकार की। देश-विदेश की यात्राएं कीं। जिसमें उन्होंने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से लेकर जोधपुर विश्वविद्यालय तक में अध्यापन का काम किया। दिल्ली लौटे और दिनमान साप्ताहिक,  नवभारत टाइम्स, अंग्रेजी पत्र  '''वाक् ''' और  '''एवरीमैंस''' जैसी प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया। १९८० में उन्होंने  '''वत्सलनिधि'''  नामक एक न्यास की स्थापना की  जिसका उद्देश्य साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में कार्य करना था। दिल्ली में ही ४ अप्रैल १९८७ को उनकी मृत्यु हुई।  
१९६४ में  '''आँगन के पार द्वार''' पर उन्हें साहित्य अकादमी का पुरस्कार प्राप्त हुआ और १९७९ में  '''कितनी नावों में कितनी बार'''  पर भारतीय [[ज्ञानपीठ पुरस्कार]]
+
१९६४ में  '''आँगन के पार द्वार''' पर उन्हें साहित्य अकादमी का पुरस्कार प्राप्त हुआ और १९७९ में  '''कितनी नावों में कितनी बार'''  पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार
  
 
==प्रमुख कृतियां ==  
 
==प्रमुख कृतियां ==  
पंक्ति 22: पंक्ति 22:
 
* '''विचार गद्य''' :संवत्‍सर
 
* '''विचार गद्य''' :संवत्‍सर
  
उनका लगभग समग्र काव्य   [[सदानीरा]] (दो खंड) नाम से संकलित हुआ है तथा अन्यान्य विषयों पर लिखे गए सारे निबंध   [[केंद्र और परिधि ]] नामक ग्रंथ में संकलित हुए हैं।  
+
उनका लगभग समग्र काव्य सदानीरा (दो खंड) नाम से संकलित हुआ है तथा अन्यान्य विषयों पर लिखे गए सारे निबंध केंद्र और परिधि नामक ग्रंथ में संकलित हुए हैं।  
 
    
 
    
विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के संपादन के साथ-साथ  अज्ञेय  ने   [[तारसप्तक]], [[ दूसरा सप्तक]], और [[तीसरा सप्तक ]] जैसे युगांतरकारी काव्य संकलनों का भी संपादन किया तथा  '''पुष्करिणी'''  और '''रूपांबरा''' जैसे काव्य-संकलनों का भी।  
+
विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के संपादन के साथ-साथ  अज्ञेय  ने तारसप्तक, दूसरा सप्तक, और तीसरा सप्तक जैसे युगांतरकारी काव्य संकलनों का भी संपादन किया तथा  '''पुष्करिणी'''  और '''रूपांबरा''' जैसे काव्य-संकलनों का भी।  
  
वे वत्सलनिधि से प्रकाशित आधा दर्जन निबंध- संग्रहों के भी संपादक हैं। निस्संदेह वे आधुनिक साहित्य के एक शलाका-पुरूष थे  जिसने [[हिंदी साहित्य]] में [[भारतेंदु]] के बाद एक दूसरे आधुनिक युग का प्रवर्तन किया।
+
वे वत्सलनिधि से प्रकाशित आधा दर्जन निबंध- संग्रहों के भी संपादक हैं। निस्संदेह वे आधुनिक साहित्य के एक शलाका-पुरूष थे  जिसने हिंदी साहित्य में भारतेंदु के बाद एक दूसरे आधुनिक युग का प्रवर्तन किया।

20:07, 28 नवम्बर 2007 का अवतरण

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय" (१९११-१९८७) का जन्म ७ मार्च १९११ को उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के कुशीनगर नामक ऐतिहासिक स्थान में हुआ था।

शिक्षा

प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा पिता की देख रेख में घर पर ही संस्कृत, फारसी, अंग्रेजी, और बांग्ला भाषा व साहित्य के अध्ययन के साथ। १९२५ में पंजाब से एंट्रेंस की परीक्षा पास की और उसके बाद मद्रास क्रिस्चन कॉलेज में दाखिल हुए। वहाँ से विज्ञान में इंटर की पढ़ाई पूरी कर १९२७ में वे बी ए़स स़ी क़रने के लिए लाहौर के फॅरमन कॉलेज के छात्र बने। १९२९ में बी ए़स स़ी करने के बाद एम ए़ म़ें उन्होंने अंग्रेजी विषय रखा; पर क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लेने के कारण पढ़ाई पूरी न हो सकी।

कार्यक्षेत्र

१९३० से १९३६ तक विभिन्न जेलों में कटे। १९३६-३७ में सैनिक और विशाल भारत नामक पत्रिकाओं का संपादन किया। १९४३ से १९४६ तक ब्रिटिश सेना में रहे; इसके बाद इलाहाबाद से प्रतीक नामक पत्रिका निकाली और ऑल इंडिया रेडियो की नौकरी स्वीकार की। देश-विदेश की यात्राएं कीं। जिसमें उन्होंने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से लेकर जोधपुर विश्वविद्यालय तक में अध्यापन का काम किया। दिल्ली लौटे और दिनमान साप्ताहिक, नवभारत टाइम्स, अंग्रेजी पत्र वाक् और एवरीमैंस जैसी प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया। १९८० में उन्होंने वत्सलनिधि नामक एक न्यास की स्थापना की जिसका उद्देश्य साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में कार्य करना था। दिल्ली में ही ४ अप्रैल १९८७ को उनकी मृत्यु हुई। १९६४ में आँगन के पार द्वार पर उन्हें साहित्य अकादमी का पुरस्कार प्राप्त हुआ और १९७९ में कितनी नावों में कितनी बार पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार

प्रमुख कृतियां

  • कविता संग्रह भग्नदूत, इत्यलम, हरी घास पर क्षण भर, बावरा अहेरी, इंद्र धनु रौंदे हुए ये, अरी ओ करूणा प्रभामय, आंगन के पार द्वार, कितनी नावों में कितनी बार, क्योंकि मैं उसे जानता हूँ, सागर-मुद्रा, महावृक्ष के नीचे, और ऐसा कोई घर आपने देखा है।
  • कहानी-संग्रह : विपथगा, परंपरा, कोठरी की बात, शरणार्थी, जयदोल, ये तेरे प्रतिरूप |
  • उपन्यास: शेखर: एक जीवनी, नदी के द्वीप, अपने अपने अजनबी।
  • यात्रा वृत्तांत: अरे यायावर रहेगा याद, एक बूंद सहसा उछली।
  • निबंध संग्रह : सबरंग, त्रिशंकु, आत्मनेपद, आधुनिक साहित्य: एक आधुनिक परिदृश्य, आलवाल,
  • संस्मरण :स्मृति लेखा
  • डायरियां : भवंती, अंतरा और शाश्वती।
  • विचार गद्य :संवत्‍सर

उनका लगभग समग्र काव्य सदानीरा (दो खंड) नाम से संकलित हुआ है तथा अन्यान्य विषयों पर लिखे गए सारे निबंध केंद्र और परिधि नामक ग्रंथ में संकलित हुए हैं।

विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के संपादन के साथ-साथ अज्ञेय ने तारसप्तक, दूसरा सप्तक, और तीसरा सप्तक जैसे युगांतरकारी काव्य संकलनों का भी संपादन किया तथा पुष्करिणी और रूपांबरा जैसे काव्य-संकलनों का भी।

वे वत्सलनिधि से प्रकाशित आधा दर्जन निबंध- संग्रहों के भी संपादक हैं। निस्संदेह वे आधुनिक साहित्य के एक शलाका-पुरूष थे जिसने हिंदी साहित्य में भारतेंदु के बाद एक दूसरे आधुनिक युग का प्रवर्तन किया।